ई-पुस्तकें >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
कुसुम–बस-बस, इस समय ये सब बातें अच्छी नहीं मालूम होती, जो हुआ सो हुआ, अब तो मेरे ऐसा भाग्यवान कोई है ही नहीं! (हंसकर) आपके दोस्त जसवंतसिंह बहादुर कहां है?
रनबीर–हाय-हाय, उस नालायक हरामजादे ने तो गजब ही किया था! बालेसिंह के घर से निकलते ही अगर तुम्हारी चिट्ठी मुझे न मिलती तो न मालूम अभी और क्या भोग भोगना पड़ता। तुम्हारे मरने की खबर सुनकर मैंने निश्चय कर लिया था कि किसी ऐसी जगह जाकर अपनी जान दे देनी चाहिए कि वर्षों सर पटकने पर भी किसी को मालूम न हो कि रनबीर कहां गया और क्या हुआ। ऐसे वक्त में तुम्हारी चिट्ठी ने दो काम किए, एक तो मुझे मरते-मरते बचा लिया, दूसरे विश्वासघाती जसवंत से जन्मभर के लिए छुट्टी दिलाई, नहीं तो वह फिर भी मेरा दोस्त ही बना रहता। सच तो यह है कि मुझे उसकी दोस्ती का पूरा विश्वास था, यहां तक कि बालेसिंह के कहने पर भी मेरा जी उसकी तरफ से नहीं हटा था।
इसके बाद रनबीरसिंह ने अपने बालेसिंह के हाथ में फंसने१ जसवंत का वहां पहुंचकर बालेसिंह से मेल करने की धुन लगाने, बालसिंह का जसंवत की बदनीयती का हाल कहने, जसवंत के कैद होने, कुसुम कुमारी के पास चिट्ठी भेजने और उनके मरने की खबर पाकर अपने छूटने का हाल पूरा-पूरा कहा, जिसे महारानी बड़े गौर के साथ सुनती रहीं।
(1. पहाड़ पर जब रनबीरसिंह कुसुमकुमारी की ओर अपनी मूरत देखकर पागल हो गए थे उसी समय पता लगाकर बालेसिंह ने धोखे में गिरफ्तार करवा लिया था। पहाड़ से उतरकर पहली मर्तबा गाँव में आते समय जो कई सवार जसंवतसिंह को मिले थे, वे बालेसिंह ही के नौकर थे यह ऊपर जनाया जा चुका है और पाठक भी समझ ही गए होंगे।)
कुसुम–अपने मरने की झूठी खबर उड़ाने के सिवाय बालेसिंह की कैद से आपको छुड़ाने की कोई तरकीब मुझे न सूझी और ईश्वर की कृपा से वह तरकीब पूरी भी उतरी।
रनबीर–ओह!!
कुसुम–मैं कई दिन पहले ही बीमारे बनकर बाग में चली गई थी। जो कुछ मेरा इरादा था वह सिवाय मेरे नेक दीवान के और कोई भी नहीं जानता था। हां लोंडियों को जरूर मालूम था । ऐसे वक्त में दीवान ने भी दिलोजान से कोशिश की और कई जासूसों के जरिए बराबर बालेसिंह के यहां की खबर लेता रहा। यह भी मुझे मालूम हो गया था कि बालेसिंह का आदमी आपके हाथ की चिट्ठी लेकर आया है, अस्तु उसी वक्त मैंने यह काम पूरा करने का मौका बेहतर समझा। (मुसकुराकर) शहर भर को विश्वास हो गया कि कुसुम कुमारी मर गई, बेचारे दीवान को उस समय राजकाज सम्हालने में बड़ी ही मुश्किल हुई!
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