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कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

यह महारानी कुसुम कुमारी वही हैं, जिनकी मूरत अपनी मूरत के साथ पहले पहल पहाड़ पर रनबीरसिंह ने देखी थी और निगाह पड़ते ही पागल हो गए थे या जिसे देखते ही जसवंतसिंह की भी नीयत ऐसी खराब हो गई थी कि उसने बालेसिंह से मिलकर रनबीरसिंह को मरवा ही डालना पसंद किया था और यह वही महारानी कुसुम कुमारी है जिसके मरने की खबर सुनकर ही बालेसिंह ने रनबीरसिंह और जसवंत को कैद से छुट्टी दे दी थी। उसी महारानी कुसुम कुमारी को जीती जागती और मिलने के लिए स्वयं सामने आती हुई रनबीरसिंह देख रहे हैं, क्या यह उनके लिए कम खुशी की बात है?

रनबीरसिंह और कुसुम कुमारी की चार आंखें होते ही दोनों मिलने के लिए एक दूसरे की तरफ झपटे, कुसुम कुमारी दौड़कर रनबीरसिंह के पैरों पर गिर पड़ी और आंखों से गरम आंसू बहाने लगी। रनबीरसिंह जल्दी से उसी जगह घास पर बैठ गए और कुसुम कुमारी को दोनों बाजू पकड़ के उठाया।

हद्द दर्जे की बढ़ी हुई खुशी भी कुछ करने नहीं देती। सिवाय इसके कि कुसुम कुमारी की दोनों कलाई पकड़ उसके मुंह की तरफ देखते रहें, रनबीर से और कुछ न बन पड़ा। इसी हालत में बैठे-बैठे आधे घंटे से ज्यादे दिन चढ़ आया और सूर्य की किरणों ने इनका चेहरा पसीने-पसीने कर दिया।

चालाक और वफादार लौंडियां बहुत कुछ कह सुनकर इन दोनों को होश में लाई और उस पत्तेवाली झोंपड़ी के अंदर ले गईं। इसके भीतर सुंदर फर्श बिछा हुआ था, जिस पर वे दोनों बैठे और धीरे-धीरे बातचीत करने की नौबत पहुंची।

रनबीर–मेरे लिए तुमको बहुत कष्ट उठाना पड़ा।

कुसुम–मुझे किसी बात की तकलीफ नहीं हुई, हां, इस बात का रंज जरूर है कि इसी कंबख्त की बदौलत बालेसिंह के कैदखाने में आपको दुःख भोगना पड़ा।

रनबीर–वहां मैं बड़े आराम से रहा, जो-जो तकलीफें तुमने उठाई हैं उसका सोलहवां हिस्सा भी मुझे नहीं उठानी पड़ीं। हाय, आज तुमको अपनी आंखों से इस जंगल मैदान में पत्तों की झोंपड़ी बना तपस्विनी बन दिन भर की गर्मी और गर्म-गर्म लू में शरीर सुखाते देखना पड़ा!

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