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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


मैंने आपसे कहा, एक द्वार खोलना जरूरी है--नया द्वार। बच्चे जैसे ही पैंदा होते हैं, वैसे ही उनके जीवन में सेक्स का आगमन नहीं हो जाता है। अभी देर है। अभी शरीर शक्ति इकट्ठी करेगा। अभी शरीर के अणु मजबूत होंगे, अभी उस दिन की प्रतीक्षा है, जब शरीर पूरा तैयार हो जाएगा। ऊर्जा इकट्ठी होगी और द्वार जो बंद रहा है 14 वर्षों तक, वह खुल जाएगा ऊर्जा के धक्के से, और सेक्स की दुनिया शुरू होगी। एक बार द्वार खुल जाने के बाद नया द्वार खोलना कठिन हो जाता है। क्योंकि समस्त ऊर्जाओं का नियम यह है, समस्त शक्तियों का, वह एक दफा अपना मार्ग खोज ले बहने के लिए तो वह उसी मार्ग से बहना पसंद करती है।

गंगा बह रही है सागर की तरफ, उसने एक बार रास्ता खोज लिया। अब वह उसी रास्ते से बही चली जाती है, बही चली जाती है। रोज-रोज नया पानी आता है, उसी रास्ते बहता हुआ चला जाता है। गंगा रोज नया रास्ता नहीं खोजती है।

जीवन की ऊर्जा भी एक रास्ता खोज लेती है। फिर वह उसी से बहती चली जाती है।

अगर जमीन को कामुकता से मुक्त करना है, तो सेक्स का रास्ता खुलने से पहले नया रास्ता, ध्यान का रास्ता, तोड़ देना जरूरी है। एक-एक छोटे बच्चे को ध्यान की अनिवार्य शिक्षा और दीक्षा मिलनी चाहिए।

पर हम उसे सेक्स के विरोध की दीक्षा देते हैं जो कि अत्यंत मूर्खतापूर्ण है। सेक्स के विरोध की दीक्षा नहीं देनी है। शिक्षा देनी है ध्यान की, पॉजिटिव कि वह ध्यान के लिए कैसे उपलब्ध हो। और बच्चे ध्यान को जल्दी उपलब्ध हो सकते हैं। क्योंकि अभी उनकी ऊर्जा का कोई भी द्वार खुला नहीं है। अभी द्वार बंद है, अभी ऊर्जा संरक्षित है, अभी कहीं भी नए द्वार पर धक्के दिए जा सकते हैं और नया द्वार खोला जा सकता है। फिर ये ही बूढ़े हो जाएंगे और इन्हें ध्यान में पहुँचना अत्यंत कठिन हो जाएगा।

ऐसे ही, जैसे एक नया पौधा पैदा होता है, उसकी शाखाएं कहीं भी झुक जाती हैं कहीं भी झुकाई जा सकती हैं। फिर वही बूढ़ा वृक्ष हो जाता है। फिर हम उसकी शाखाओं को झुकाने की कोशिश करते हैं फिर शाखाएं टूट जाती हैं झुकती नहीं।

बूढ़े लोग ध्यान की चेष्टा करते हैं दुनिया में जो बिल्कुल ही गलत है। ध्यान की सारी चेष्टा छोटे बच्चों पर की जानी चाहिए। लेकिन मरने के करीब पहुंचकर आदमी ध्यान में उत्सुक होता है! वह पूछता है ध्यान क्या, योग क्या हम कैसे शांत हो जाएं! जब जीवन की सारी ऊर्जा खो गई, जब जीवन के सब रास्ते सख्त और मजबूत हो गए, जब झुकना और बदलना मुश्किल हो गया, तब वह पूछता है कि अब मैं कैसे बदल जाऊं। एक पैर आदमी कब्र में डाल लेता है और दूसरा पैर बाहर रख कर पूछता है, ध्यान का कोई रास्ता है?

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