अजीब-सी बात है। बिल्कुल पागलपन की बात है। यह पृथ्वी कभी भी शांत और
ध्यानस्थ नहीं हो सकेगी, जब तक ध्यान का संबध पहले दिन के पैदा हुए बच्चे से
हम न जोड़ेंगे। अंतिम दिन के वृद्ध से नहीं जोड़ा जा सकता। व्यर्थ ही हमें बहुत
श्रम उठाना पड़ता है बाद के दिनों में शांत होने के लिए, जो कि पहले एकदम हो
सकता था।
छोटे बच्चे को ध्यान की दीक्षा काम के रूपांतरण का पहला चरण है-शांत होने की
दीक्षा निर्विचार होने की दीक्षा मौन होने की दीक्षा।
बच्चे ऐसे भी मौन हैं, बच्चे ऐसे भी शांत हैं। अगर उन्हें थोड़ी-सी दिशा दी
जाए, और उन्हें मौन और शांत होने के लिए घड़ी भर की भी शिक्षा दी जाए, तो जब
वे 14 वर्ष के होने के करीब आएंगे, जब काम जागेगा, तब तक उनका एक द्वार खुल
चुका होगा। शक्ति इकट्ठी होगी और जो द्वार खुला है उसी द्वार से बहनी शुरू हो
जाएगी। उन्हें शांति का, आनंद का, काल-हीनता का निरहंकार भाव का अनुभव सेक्स
के बहुत अनुभव के पहले उपलब्ध हो जाएगा। वही अनुभव उनकी ऊर्जा को गलत मार्गों
से रोकेगा और ठीक मार्गों पर ले आएगा।
लेकिन हम छोटे-छोटे बच्चों को ध्यान तो नहीं सिखाते, काम का विरोध सिखाते
हैं! पाप है, गंदगी है, कुरूपता है, बुराई है, नरक है-यह सब हम बताते
हैं! और इस सबके बताने से कुछ भी फर्क नहीं पड़ता-कुछ भी फर्क नहीं पडता।
बल्कि हमारे बताने से वे और भी आकर्षित होते हैं और तलाश करते हैं कि क्या है
यह गंदगी, क्या है यह नरक, जिसके लिए बड़े इतने भयभीत और बेचैन हैं?
और फिर थोड़े ही दिनों में उन्हें यह भी पता चल जाता है कि जिस बात से हम
रोकने की कोशिश कर रहे हैं खुद दिन-रात उसी में लीन है। और जिस दिन उन्हें यह
पता चल जाता है, मां-बाप के प्रति सारी श्रद्धा समाप्त हो जाता है।
मां-बाप के प्रति श्रद्धा समाप्त करने में शिक्षा का हाथ नहीं है। मां बाप के
प्रति श्रद्धा समाप्त करने में मां-बाप का अपना हाथ है।
आप जिन बातों के लिए बच्चों को गंदा कहते हैं, बच्चे बहुत जल्दी पता लगा लेते
हैं कि उन सारी गंदगियों मे आप भली-भांति लवलीन हैं। आपकी दिन की जिदगी दूसरी
है और: रात की, दूसरी। आप कहते कुछ हैं करते कुछ है।
छोटे बच्चे बहुत एक्यूट आब्जर्वर होते हैं। वे बहुत गौर से निरीक्षण करते
रहते हैं कि क्या हो रहा है घर में। वे देखते हैं कि मां जिस बात को गंदा
कहती है, बाप जिस बात को गंदा कहता है, वही गंदी बात दिन-रात घर में चल रही
है। इसका उन्हें बहुत जल्दी बोध हो जाता है। उनकी सारी श्रद्धा का भाव विलीन
हो जाता हें कि धोखेबाज हैं ये मां-बाप। पाखंडी हैं। हिपोक्रेट हैं। ये बातें
कुछ और कहते हैं करते कुछ और हैं।
और जिन बच्चों का मा-बाप पर से विश्वास उठ गया, वे बच्चे परमात्मा पर कभी
विश्वास नहीं कर सकेंगे। इसको याद रखना। क्योंकि बच्चों के लिए परमात्मा का
पहला दर्शन मां-बाप में होता है। अगर वही खंडित हो गया तो ये बच्चे भविष्य
में नास्तिक हो जाने वाले हैं। बच्चों को पहले परमात्मा की प्रतीति अपने
मा-बाप की पवित्रता से होती है। पहली दफा बच्चे मा-बाप को ही जानते है निकटतम
और उनसे ही उन्हें पहली दफा श्रद्धा और रिवरेंस का भाव पैदा होता है। अगर वही
खंडित हो गया तो इन बच्चों को मरते दम तक वापस परमात्मा के रास्ते पर लाना
मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि पहला परमात्मा ही धोखा दे गया। जो मां थी, जो बाप
था वही धोखेबाज सिद्ध हुआ।
आज सारी दुनिया में जो लड़के यह कह रहे हैं कि कोई परमात्मा नहीं है, कोई
आत्मा नहीं है, कोई मोक्ष नहीं है; धर्म सब बकवास है-उसका कारण यह नहीं है कि
लड़कों ने पता लगा लिया है आत्मा नहीं है, परमात्मा नहीं है। उसका कारण यह है
कि लड़कों ने मां-बाप का पता लगा लिया है कि वे धोखेबाज हैं और यह सारा धोखा
सेक्स के आसपास केंद्रित है। यह सारा धोखा सेक्स के केंद्र पर खड़ा हुआ है।
बच्चों को यह सिखाने की जरूरत नहीं है कि सेक्स पाप है, बल्कि ईमानदारी में
यह सिखाने की जरूरत है कि सेक्स जिंदगी का एक हिस्सा है और तुम सेक्स से ही
पैदा हुए हो और हमारी जिंदगी में वह है, ताकि बच्चे सरलता से मां-बाप को समझ
सकें और जब जीवन को वह जानेंगे तो आदर से भर सकें कि मां-बाप सच्चे और
ईमानदार हैं। उनको जीवन में आस्तिक बनाने में इससे बड़ा संबल और कुछ भी नहीं
होगा कि वे अपने मां-बाप को सच्चे और ईमानदार अनुभव कर सकें।
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