सारी दुनिया का गृहस्थ-जीवन नष्ट किया है सेक्स को गाली देने वाले, निंदा
करने वाले लोगों ने। और वे इसे नष्ट करके जो दुष्परिणाम लाए हैं वह यह नहीं
है कि सेक्स से लोग मुक्त हो गए हों। जो पति अपनी पत्नी और अपने बीच एक दीवाल
पाता है पाप की, वह पत्नी से कभी भी तृप्ति अनुभव नहीं कर पाता। तो आसपास की
स्त्रियों को खोजता है, वेश्याओं को खोजता है। खोजेगा। अगर पत्नी से उसे
तृप्ति मिल गई होती तो शायद इस जगत की सारी स्त्रियां उसके लिए मां और बहन हो
जातीं। लेकिन पत्नी से भी तृप्ति न मिलने के कारण सारी स्त्रियां उसे
पोटेंशियल औरतों की तरह, पोटेंशियल पत्नियों की तरह मालूम पड़ती हैं जिनको
पत्नी में बदला जा सकता है।
यह स्वाभाविक है, यह होने वाला था। यह होने वाला था, क्योंकि जहां तृप्ति मिल
सकती थी; वहां जहर है, वहां पाप है। और तृप्ति नहीं मिलती। और वह चारों तरफ
भटकता है और खोजता है। और क्या-क्या ईजादे करता है खोजकर आदमी! अगर इन सारी
ईजादों को हम सोचने बैठें तो घबरा जाएंगे कि आदमी ने क्या-क्या ईजादें की
हैं! लेकिन एक बुनियादी बात पर ख्याल नहीं किया कि वह जो प्रेम का कुआं था,
वह जो काम का कुआं था वह जहरीला बना दिया गया है।
और जब पति और पत्नी के बीच जहर का भाव हो, घबराहट का भव हो, पाप का भाव हो तो
फिर यह पाप की भावना रूपांतरण नहीं करने देगी। अन्यथा मेरी समझ यह है कि एक
पति और पत्नी अगर एक-दूसरे के प्रति समझपूर्वक प्रेम से भरे हुए, आनंद से भरे
हुए और सेक्स के प्रति बिना निंदा के सेक्स को समझने की चेष्टा करेंगे तो आज
नहीं कल, उनके बीच का संबंध रूपांतरित हो जाने वाला है। यह हो सकता है कि कल
वही पत्नी मां जैसी दिखाई पड़ने लगे।
गांधीजी 1930 के करीब श्रीलंका गए थे। उनके साथ कस्तूरबा साथ थीं। संयोजकों
ने समझा कि शायद गांधीजी की मां साथ आई हुई हैं क्या गांधीजी कस्तूरबा को खुद
भी बा ही कहते थे। लोगों ने समझा शायद उनकी मां होगी। संयोजकों ने परिचय देते
हुए कहा कि गांधीजी आए हैं और बड़े सौभाग्य की बात है कि उनकी मां भी साथ आई
हुई है। वह उनके बगल में बैठी हैं। गांधीजी के सेक्रेटरी तो घबरा गए कि यह तो
भूल हमारी है, हमें बताना था कि साथ में कौन है। लेकिन अब तो बड़ी देर हो चुकी
थी। गांधी तो मंच पर जाकर बैठ भी गए थे और बोलना शुरू कर दिया था। सेक्रेटरी
घबड़ाए हुए हैं कि गांधी पीछे क्या कहेंगे। उन्हें कल्पना भी नहीं हो सकती थी
कि गांधी नाराज नहीं होंगे, क्योंकि ऐसे पुरुष बहुत कम हैं जो पत्नी को मां
बनाने में समर्थ हो जाते हैं।
लेकिन गांधीजी ने कहा कि सौभाग्य की बात है, जिन मित्र ने मेरा परिचय दिया
है, उन्होंने भूल से एक सच्ची बात कह दी। कस्तूरबा कुछ वर्षों से मेरी मां हो
गई है। कभी वह मेरी पत्नी थी। लेकिन अब वह मेरी मां है।
इस बात की संभावना है कि अगर पति और पत्नी काम को, संभोग को समझने की चेष्टा
करें तो एक-दूसरे के मित्र बन सकते हैं और एक-दूसरे के काम के रूपांतरण में
सहयोगी और साथी हो सकते हैं।
और जिस दिन कोई पति और पत्नी अपने आपस के संभोग के संबंध को रूपांतरित करने
में सफल हो जाते हैं, उस दिन उनके जीवन मे पहली दफा एक-दूसरे के प्रति
अनुग्रह और ग्रेटीट्यूड का भाव पैदा होता है, उसके पहले नहीं। उसके पहले वे
एक-दूसरे के प्रति क्रोध से भरे रहते हैं उसके पहले वे एक-दूसरे के बुनियादी
शत्रु बने रहते हैं उसके पहले उनके, बीच एक संघर्ष है, मैत्री नहीं।
मैत्री उस दिन शुरू होती है जिस दिन वे एक-दूसरे के साथी बनते हैं और उनके
काम की ऊर्जा को रूपांतरण करने में माध्यम बन जाते हैं। उस दिन एक
अनुग्रह, एक ग्रेटीट्यूड, एक कृतज्ञता का भाव ज्ञापन होता है। उस दिन पुरुष
आदर से भरता हैं स्त्री के प्रति, क्योंकि स्त्री ने उसे काम-वासना से मुक्त
होने में सहायता पहुंचाई है। उस दिन स्त्री अनुगृहीत होती है पुरुष के प्रति
कि उसने उसे साथ दिया और वासना से मुक्ति दिलवाई। उस दिन वे सच्ची मैत्री में
बंधते हैं जो काम की नहीं, प्रेम की मैत्री है। उस दिन उनका जीवन ठीक उस दिशा
में जाता है, जहां पत्नी के लिए पति परमात्मा हो जाता है। और पति के लिए
पत्नी परमात्मा हो जाती है उस दिन।
लेकिन वह कुआं तो विषाक्त कर दिया गया है! इसीलिए मैंने कल कहा कि मुझसे बड़ा
शत्रु सेक्स का खोजना कठिन है। लेकिन मेरी शत्रुता का यह मतलब नहीं है कि मैं
सेक्स को गाली दूं और निदा करूं। मेरी शत्रुता का मतलब यह है कि मैं सेक्स को
रूपांतरित करने के संबंध में दिशा-सूचन करूं। मै आपको कहूं कि वह कैसे
रूपांतरित हो सकता है। मैं कोयले का दुश्मन हूं, क्योकि मैं कोयले को हीरा
बनाना चाहता हूं। मैं सेक्स को रूपांतरित करना चाहता हूं। वह कैसे रूपांतरित
होगा? उसकी क्या विधि होगी?
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