लेकिन हम यह भूल गए कि दबाने से कोई चीज नष्ट नहीं होती है, दबाने से और
बलशाली हो जाती है। और हम यह भूल गए कि दबाने से हमारा आकर्षण और गहरा होता
है। जिसे हम दबाते हैं वह हमारी चेतना की और गहरी पर्तों में प्रविष्ट हो
जाता है। हम उसे दिन में दबा लेते हैं वह सपने में हमारी आंखों में झूलने
लगता है। हम उसे रोजमर्रा दबा लेते हैं वह हमारे भीतर प्रतीक्षा करता है कि
कब मौका मिल जाए कब मैं फूट पडूं, निकल पडूं। जिसे हम दबाते हैं उससे हम
मुक्त नहीं होते, हम और गहरे अर्थों में, गहराइयों में, और अचेतन मे और
अनकाशस तक उसकी जड़ें पहुंच जाती हैं और वह हमें जकड़ लेता है।
आदमी सेक्स को दबाने के कारण ही बंध गया और जकड़ गया। और यही वजह है कि पशुओं
की तो सेक्स की कोई अवधि होती है, कोई पीरियड होता है। वर्ष में; आदमी की कोई
अवधि न रही, कोई पीरियड न रहा? आदमी चौबीस घंटे, बारह महीने सेक्सुअल है!
सारे जानवरों में कोई जानवर ऐसा नहीं है कि जो बारह महीने, चौबीस घंटे
कामुकता से भरा हुआ हो। उसका वक्त है, उसकी त्ररतु है; वह आती है और चली जाती
है। और फिर उसका स्मरण भी खो जाता है।
आदमी को क्या हो गया है? आदमी ने दबाया जिस चीज को वह फैलकर उसके चौबीस घंटे
और बारह महीने के जीवन पर फैल गई है।
कभी आपने इस पर विचार किया कि कोई पशु हर स्थिति में हर समय कामुक नहीं होता।
लेकिन आदमी हर स्थिति में, हर समय कामुक है-जैसे कामुकता उबल रही है, जैसे
कामुकता ही सब कुछ है। यह कैसे हो गया? यह दुर्घटना कैसे संभव हुई है? पृथ्वी
पर सिर्फ मनुष्य के साथ हुई है और किसी जानवर के साथ नहीं-क्यों?
एक ही कारण है, सिर्फ मनुष्य ने दबाने की कोशिश की है और जिसे दबाया, वह जहर
की तरह सब तरफ फैल गया। और दबाने के लिए हमें क्या करना पड़ा? दबाने के लिए
हमें निंदा करनी पड़ी, दबाने के लिए हमें गाली देनी पड़ी, दबाने के लिए हमें
अपमानजनक भावनाएं पैदा करनी पड़ी। हमें कहना पड़ा-सेक्स पाप है, हमें कहना पड़ा
कि सेक्स नरक है। हमें कहना पड़ा कि जो सेक्स में है, वह गर्हित है, निदिंत
है। हमें ये सारी गालियां खोजनी पड़ी, तभी हम दबाने में सफल हो सके। और हमें
ख्याल भी नहीं कि इन निंदाओं और गालियों के कारण हमारा सारा जीवन जहर से भर
गया है।
नीत्से ने एक वचन कहा है, जो बहुत अर्थपूर्ण है। उसने कहा है कि धर्मों ने
जहर खिलाकर सेक्स को मार डालने की कोशिश की थी। सेक्स मरा तो नहीं सिर्फ
जहरीला होकर जिंदा है। मर भी जाता तो ठीक था। वह मरा नहीं। लेकिन और गड़बड़ हो
गई बात। वह जहरीला भी हो गया और जिंदा है। यह जो सेक्यूअलिटी है, यह जहरीला
सेक्स है।
सेक्स तो पशुओं में भी है, काम तो पशुओं में भी है, क्योंकि काम जीवन की
ऊर्जा है। लेकिन सेक्सुअलिटी, कामुकता सिर्फ मनुष्य में है। कामुकता पशुओं
में नहीं है। पशुओं की आखों में देखें, वहां कामुकता दिखाई नहीं पड़ेगी, आदमी
की आंखों में झांकें, वहां एक कामुकता का रस झलकता हुआ दिखाई पड़ेगा! इसलिए
पशु आज भी एक तरह से सुंदर है। लेकिन दमन करने वाले पागलों की कोई सीमा नहीं
है कि वे कहां तक बढ़ जाएंगे।
मैंने कल आपको कहा था कि अगर हमें दुनिया को सेक्स से मुक्त करना है, तो
बच्चे और बच्चियों को एक-दूसरे के निकट लाना होगा। इसके पहले कि उनमें सेक्स
जागे, चौदह साल के पहले वे एक-दूसरे के शरीर से इतने स्पष्ट रूप से परिचित हो
लें कि वह आकांक्षा विलीन हो जाए।
लेकिन अमरीका में अभी-अभी एक नया आंदोलन चला है। और वह नया आंदोलन वहां के
बहुत धार्मिक लोग चला रहे है। शायद आपको पता भी न हो, वह नया आंदोलन बड़ा
अद्भुत है। वह आंदोलन यह है कि सड़कों पर गाय, भैस, घोड़े, कुत्ते, बिल्ली को
भी बिना कपड़े के नहीं निकाला जाए, उनको कपड़े पहनाकर निकाला जाए, उनको भी
कपड़े पहनने चाहिए! क्योंकि नंगे पशुओं को देखकर बच्चे बिगड़ सकते हैं! अमरीका
के कुछ नीतिशास्त्री इसके बाबत आंदोलन और संगठन और संस्थाएं बना रहे हैं कि
पशुओं को भी सड़कों पर नग्न नहीं लाया जा सके! आदमी को बचाने की इतनी कोशिशें
चल रही हैं! और कोशिश बचाने की जो करने वाले लोग हैं वे ही आदमी को नष्ट कर
रहे हैं।
कभी आपने ख्याल किया कि पशु अपनी नग्नता में भी अँद्भुत है और सुंदर है। उसकी
नग्नता में भी वह निर्दोष है, सरल और सीधा है। कभी आपको पशु नग्न है, यह भी
ख्याल शायद ही आया हो। जब तक कि आपके भीतर बहुत नंगापन न छिपा हो, तब तक आपको
पशु नंगा नहीं दिखाई पड़ सकता।
लेकिन वे जो भयभीत लोग हैं वे डरे हुए लोग हैं वे भय और डर के कारण सब कुछ कर
रहे हैं आजतक। और उनके सब करने से आदमी रोज नीचे से नीचे उतरता जा रहा है।
जरूरत तो यह है कि आदमी भी किसी दिन इतना सरल हो कि नग्न खड़ा हो सके-निर्दोष
और आनंद से भरा हुआ।
जरूरत तो यह है कि...जैसे महावीर जैसा व्यक्ति नग्न खड़ा हो गया। लोग कहते हैं
कि उन्होंने कपड़े छोड़े, कपड़ों का त्याग किया। मैं कहता हूं, न कपड़े छोड़े, न
कपड़ो का त्याग किया। चित्त इतना निर्दोष हो गया होगा, इतना इनोसेंस, जैसे एक
छाटे बच्चे का, तो वे नग्न खड़े हो गए होंगे. क्योंकि ढांकने को जब कुछ भी
नहीं रह जाता तो आदमी नग्न हो सकता है।
जब तक ढांकने को कुछ है हमारे भीतर, तब तक आदमी अपने को छिपाएगा। जब ढांकने
को कुछ भी नहीं है, तो नग्न हो सकता है।
चाहिए तो एक ऐसी पृथ्वी कि आदमी भी इतना सरल होगा कि नग्न होने में भी उसे
कोई पश्चाताप कोई पीड़ी न होगी। नग्न होने में उसे कोई अपराध न होगा। आज तो हम
कपड़े पहनकर भी अपराधी मालूम होते हैं! हम कपड़े पहनकर भी नंगे हैं! और ऐसे लोग
भी रहे हैं जो नग्न होकर भी नग्न नहीं थे।
नंगापन मन की एक वृत्ति है।
सरलता, निर्दोष चित्त-फिर नग्नता भी सार्थक हो जाती है, अर्थपूर्ण हो जाती
है, वह भी एक सौदर्य ले लेती है।
लेकिन अब तक आदमी को जहर पिलाया गया है और जहर का परिणाम यह हुआ कि हमारा
सारा जीवन एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक विषाक्त हो गया
स्त्रियों को हम कहते हैं पति को परमात्मा समझना! और उन स्त्रियों को बचपन से
सिखाया गया है कि सेक्स पाप है, नरक है। वे कल विवाहित होंगी, वे उस पति को
कैसे परमात्मा मान सकेगी जो उन्हें सेक्स में और नरक में ले जा रहा है। एक
तरफ हम सिखाते हैं पति परमात्मा है और पत्नी का अनुभव कहता है कि? यह पहला
पापी है, जो मुझे नरक में घसीट रहा है।
एक बहिन ने मुझे आकर कहा पिछली मीटिंग में जब मैं यहां बोला, भारतीय
विद्याभवन में, तो एक बहिन मेरे पास उसी दिन आई और उसने कहा कि मैं...'मैं
बहुत गुस्से में हूं, मैं बहुत क्रोध में हूं। सेक्स तो बड़ी घृणित चीज है।
सेक्स तो पाप है। और आपने सेक्स की इतनी बात क्यों की? मैं तो घृणा करती हूं
सेक्स को।'
अब यह पत्नी है-इसका पति है, इसके बच्चे हैं, बच्चियां हैं और यह पत्नी सेक्स
को घृणा करती है! वह पति को कैसे प्रेम कर सकती है, जो इसे सेक्स में ले जा
रहा है? यह उन बच्चों को कैसे प्रेम कर सकती है, जो सेक्स से पैदा हो रहे
हैं? इसका प्रेम जहरीला रहेगा। इसके प्रेम में जहर छिपा रहेगा। पति और इसके
बीच एक बुनियादी दीवाल खड़ी रहेगी। बच्चों और इसके बीच एक बुनियादी दीवाल खड़ी
रहेगी। क्योंकि वह सेक्स की दीवाल और सेक्स की कंडेमनेशन की वृत्ति के बीच
में खड़ी है। ये बच्चे पाप से आए हैं। यह पति और मेरे बीच पाप का संबंध है और
जिनके साथ पाप का संबंध है, उनके प्रति हम मैत्रीपूर्ण हो सकते हैं? पाप के
प्रति हम मैत्रीपूर्ण हो सकते हैं?
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