लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> हौसला

हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698
आईएसबीएन :9781613016015

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

198 पाठक हैं

नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं

शारीरिक क्षमता के अनुसार उद्योग-धंधों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा खेल-कूद में इनकी भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

विकलांग होने की हीनग्रंथि से छुटकारा पाने के लिए विकलांगों को प्रशिक्षित कर किसी अच्छे व्यवसाय से जोड़ना चाहिए। संसार में अनेक ऐसे कार्य हैं जिन्हें विकलांग अपने अधूरेपन या अपंग होने के बावजूद भली प्रकार कर सकते हैं और अपने पैरों पर खड़े होकर आत्मनिर्भर हो सकते हैं।

हमें किसी को भी अनुमान के आधार पर विकलांग घोषित नहीं करना चाहिए। विधि अनुसार परीक्षण करके, पूरी तसल्ली होने पर ही किसी को विकलांग माना जाना चाहिए। यह सर्वमान्य तथ्य है कि समाज में सर्वाधिक दुखद स्थिति अंधों की है। लूले लंगड़ों में भी छोटे बड़े विकलांग होने का ठप्पा नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करने पर वर्गीकरण का ठप्पा अभिशाप बनकर सदा-सदा के लिए उनके नाम के साथ चिपक जाएगा। उन्हें किसी प्रकार की विशिष्टता न प्रदान करें। इसके विपरीत स्वाभाविक जीवनयापन व कार्यकलाप की सुविधाएँ प्रदान कर, समाज की मुख्यधारा में उन्हें खपाना ही उनके लिए हितकर सिद्ध होगा।

भौतिकवादी मशीनीकरण ने विकलांगों की संख्या बढ़ाई है तो इनके प्रति हमारी सोच में क्रांतिकारी परिवर्तन करके, हमें इनके प्रति अधिक संवेदनशील भी बनाया है। आज हम चाहते हैं कि जो सक्षम हैं उन्हें विकलांग लोगों के साथ शारीरिक और मानसिक सामंजस्य स्थापित करने में सहायता करनी चाहिए। उनके लिए काम के अवसर में सहायता करनी चाहिए। उनके लिए काम के अवसर उपलब्ध कराने में सहायता देनी चाहिए। इन उद्‌देश्यों को रेडियो प्रसारण तथा टेलीविजन के कार्यक्रमों द्वारा प्रचारित किया जा सकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book