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			 ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक हनुमान बाहुकगोस्वामी तुलसीदास
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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र
 
। 28 ।
तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर,
 भूलत सरीरसुधि सक्र-रबि-राहुकी ।
 तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब,
 तेरो नाम लेत रहै आरति न काहुकी ।।
 
 साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि,
 हाथ कपिनाथहीके चोटी चोर साहुकी।
 आलस अनख परिहासकै सिखावन है,
 एते दिन रही पीर तुलसीके बाहुकी ।।
 
 भावार्थ - हे वीर! आपके लड़कपन का खेल सुनकर धीरजवान् भी भयभीत हो जाते हैं और इन्द्र, सूर्य तथा राहुको अपने शरीरकी सुध भुला जाती है। आपके बाहुबल से सब लोकपाल शोकरहित होकर बसते हैं और आपका नाम लेने से किसी का दुःख नहीं रह जाता। साम, दान और भेद- नीतिका विधान तथा वेद-लवेदसे भी सिद्ध हें कि चोर-साहुकी चोटी कपिनाथ के ही हाथ में रहती है। तुलसीदास के जो इतने दिन बाहु की पीड़ा रही है सो क्या आपका आलस्य है अथवा क्रोध, परिहास या शिक्षा है।। 28 ।।
 			
		  			
						
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