ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक हनुमान बाहुकगोस्वामी तुलसीदास
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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र
। 27 ।
सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल,
लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है ।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार,
जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ।।
तोरि जमकातरि मंदोदरि कढ़ोरि आनी,
रावनकी रानी मेघनाद महँतारी है ।
भीर बाँहपीरकी निपट राखी महाबीर,
कौनके सकोच तुलसीके सोच भारी है ।।
भावार्थ - सिंहिकाके बलका संहार करके सुरसाके छलको सुधारकर लंकिनीको मार गिराया और अशोकवाटिकाको उजाड़ डाला। लंकापुरीको अच्छी तरहसे जलाकर मकरी को विदीर्ण करके बारंबार राक्षसों की सेना का विनाश किया। यमराज का खड्ग अर्थात् परदा फाड़कर मेघनादकी माता और रावण की पटरानी मन्दोदरी को राजमहल से बाहर निकाल लाये। हे महाबली कपिराज! तुलसी को बड़ा सोच है, किसके संकोच में पड़कर आपने केवल मेरे बांह की पीड़ा के भय को छोड़ रखा है।। 27 ।।
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