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			 ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक हनुमान बाहुकगोस्वामी तुलसीदास
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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र
 
। 26 ।
भालकी कि कालकी कि रोषकी त्रिदोषकी है,
 बेदन बिषम पाप-ताप छलछाँहकी ।
 करमन कूटकी कि जंत्रमंत्र बूटकी,
 पराहि जाहि पापिनी मलीन मनमाँहकी ।।
 
 पैहहि सजाय नत कहत बजाय तोहि,
 बावरी न होहि बानि जानि कपिनाँहकी ।
 आन हनुमानकी दोहाई बलवानकी,
 सपथ महाबीरकी जो रहै पीर बाँहकी ।।
 
 भावार्थ - यह कठिन पीड़ा कपालकी लिखावट है या समय, क्रोध अथवा त्रिदोषका या मेरे भयंकर पापोंका परिणाम है, दुःख किंवा धोखे की छाया है। मारणादि प्रयोग अथवा यन्त्र-मन्त्ररूपी वृक्ष का फल है; अरी मनकी मैली पापिनी पूतना! भाग जा, नहीं तौ मैं डंका पीटकर कहे देता हूँ कि कपिराजका स्वभाव जानकर तू पगली न बने। जो बाहुकी पीड़ा रहे तो मैं महाबीर बलवान् हनुमानजी की दोहाई और सौगन्ध करता हूँ अर्थात् अब वह नहीं रह सकती ।। 26 ।।
 			
		  			
						
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