ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक हनुमान बाहुकगोस्वामी तुलसीदास
|
8 पाठकों को प्रिय 105 पाठक हैं |
सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र
। 29 ।
टूकनिको घर-घर डोलत कँगाल बोलि,
बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है ।
कीन्ही है सँभार सार अंजनीकुमार बीर,
आपनो बिसारिहैं न मेरेहू भरोसो है ।।
इतनी परेखो सब भांति समरथ आजु,
कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है ।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास,
चीरीको मरन खेल बालकनिको सो है ।।
भावार्थ - हे गरीबों के पालन करनेवाले कृपानिधान! टुकड़े के लिये दरिद्रतावश घर-घर मैं डोलता-फिरता था, आपने बुलाकर बालक के समान मेरा पालन-पोषण किया है। हे वीर अंजनीकुमार! मुख्यत: आपने ही मेरी रक्षा की है, अपने जन को आप न भुलायेंगे, इसका मुझे भी भरोसा है। हे कपिराज! आज आप सब प्रकार समर्थ हैं, मैं सच कहता हूँ, आपके समान भला तीनों लोकोंमें कौन है? किंतु मुझे इतना परेखा (पछतावा) है कि यह सेवक दुर्दशा सह रहा है, लड़कों का खेलवाड़ होने के समान चिड़िया की मृत्यु हो रही है और आप तमाशा देखते हैं ।। 29 ।।
|