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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> दिव्य संदेश

दिव्य संदेश

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :29
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9692
आईएसबीएन :978-1-61301-245

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सरल भाषा में शिवपुराण


21

अपने लिये न्याय चाहो, न्याय-प्राप्त से अधिक स्वीकार न करो और दूसरों को अधिक देने में सुख का अनुभव करो।

22

दूसरों से आशा मत करो, पर दूसरों की आशाओं को यथासाध्य पूर्ण करो।

23

दूसरों के अधिकार की रक्षा करो, अपने अधिकार का संकोच कर दो और अपने कर्तव्य का पालन करो। अर्थलिप्सा न रखकर त्याग करो।

24

अपनी जान में न किसी का बुरा चाहो न बुरा करो और न किसी का बुरा होते देखकर प्रसन्न होओ तथा न उसका समर्थन ही करो।

25

सदा सबका भला सोचो, भला करो और भला होते देखकर प्रसन्न होओ, दूसरों के दु:खको कभी दु:खी मत करो, वरन् दूसरों के दु:ख मिटाकर उन्हें सुखी बनाने के लिये आवश्यक हो तो अपने सुख को बलिदान कर दो।

26

याद रखो, जिससे परिणाम में दूसरों का अहित होगा, उससे तुम्हारा हित ही होगा, कभी अहित नहीं होगा।

27

यही चाहो, सब लोग सुखी हों, सभी तन-मन से नीरोग हों, सभी कल्याण् को प्राप्त करें, सभी त्रिविध तापोंसे मुक्त हों।

28

अपने द्वारा कभी किसी का उपकार हुआ हो तो उसे भूल जाओ तथा दूसरे किसी के द्वारा तुम्हारा कभी अपकार हुआ हो तो उसे भूल जाओ।

29

अपने द्वारा कभी किसी का अपकार हुआ हो तो उसे याद रखो और दूसरे किसी के द्वारा तुम्हारा कभी कुछ उपकार हुआ हो तो उसे याद रखो।

30

किसी भी देवता या भगवान् के स्वरूप में छोटे-बड़े का भाव न रखो, न किसी की निन्दा करो। यथासाध्य अपने इष्टस्वरूपकी प्रसन्नता के लिये साधना-पूजा-आराधना करो।

31

नित्य प्रात: सायं नियमितरूप से विश्वासपूर्वक भगवत्प्रार्थना करो एवं नित्य सत्संग स्वाध्याय करो; बुरे साहित्यसे सदा बचो।

32

मृत्यु को सदा अत्यन्त समीप समझकर व्यर्थ-अनर्थ कार्यों से बचो और सावधानी के साथ भगवान् का स्मरण करते हुए भगवत्सेवाके भावसे ही आवश्यक शुभ कार्य करो।

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