आचार्य श्रीराम किंकर जी >> दिव्य संदेश दिव्य संदेशहनुमानप्रसाद पोद्दार
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सरल भाषा में शिवपुराण
मनुष्य सर्वप्रिय औऱ सफल-जीवन कैसे बने?
मनुष्य-जीवन भगवत्प्राप्ति या भगवान् के प्रेम की प्राप्ति के लिए ही है, भोग प्राप्ति के लिये नहीं।
मानव की यथार्थ मानवता का प्रारम्भ और विकास तभी होता है, जब वह भगवत्प्राप्ति के पथ पर चलने लगता है और क्रमश: आगे बढ़ता है।
भगवत्प्राप्ति के पथपर चलनेवाला मनुष्य दैवी-सम्पदा सम्पन्न देव-मानव है और कामोपभोगपरायण मनुष्य आसुरी-सम्पदावाला असुर-मानव है। दैवी-सम्पत्ति से ‘मोक्ष’की प्राप्ति होती है और आसुरी-सम्पत्ति से ‘बन्धन’ की।
भगवत्प्राप्ति के सार्वभौम साधनों को जानो और यथासाध्य उनका पालन करो।
भगवान् का स्मरण करते हुए ही भगवत्सेवा के भाव से अपने कर्तव्य का पालन करो- अपना-अपना योग्य काम करो।
भगवान् की स्मृति ही पुण्य, सौभाग्य, बुद्धिमत्ता, सम्पदा औऱ सुख है तथा भगवान् की विस्मृति ही पाप, दुर्भाग्य मूर्खता, विपत्ति और दु:ख है।
भगवान् को सदा सर्वत्र वर्तमान जानकर उनकी संनिधिमें उनके प्रिय कार्य करो। जीभ से भगवान् का नाम लो, मन से भगवान् का चिन्तन करो और शरीर से होनेवाली प्रत्येक क्रिया में भगवान् की पूजा की भावना करो।
नाटक के सफल अभिनेता के अभिनय की भाँति बिना आसक्ति और ममता के काम भलीभाँति पूर्ण करो और करो केवल भगवत्प्रीति के लिये ही।
समय को व्यर्थ कार्य, व्यर्थ की बातचीत तथा व्यर्थ चिन्तन में कभी मत खोओ।
अधिक मत बोलो, जरुरत हो तभी बोलो, मधुर हितकर सत्य बोलो और शेष समय जीभ के द्वारा भगवान् के नाम का जप-रटन करो।
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