लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690
आईएसबीएन :9781613014639

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा

12

दूसरे दिन प्रात:काल वे घर पहुंचे। माता ने आश्चर्य से पूछा- 'देवा, क्या कॉलेज की छुट्टी हो गई?'

दो दिन देवदास ने बड़ी चुस्ती के साथ बिताये। उसकी जो अभिलाषा थी वह पूरी नहीं हो रही थी- पार्वती से किसी निर्जन स्थान पर भेंट नहीं होती। दो दिन बाद पार्वती की भी मां ने देवदास को सामने देखकर कहा- 'अगर इधर आ गये हो, तो पार्वती के विवाह तक ठहर जाओ।'

देवदास ने कहा- 'अच्छा।'

दोपहर के समय पार्वती नित्य बांध से जल लाने के लिए जाती थी। बगल में पीतल की कलसी लेकर आज भी वह घाट पर आयी, देखा, निकट ही एक बेर के पेड़ की आड़ में देवदास जल में बंसी फेंककर बैठे हैं। एक बार उसके मन में आया कि लौट चले, एक बार मन में आया कि चुपके से जल भरकर ले चले। किंतु जल्दी में वह कुछ भी स्थिर न कर सकी। कलसी को घाट पर रखते समय सम्भवत: कुछ शब्द हुआ, इसी से देवदास की दृष्टि उस ओर खिंच गयी। उसने पार्वती को देख, हाथ के इशारे से बुलाकर कहा- 'पारो, सुन जाओ!' पार्वती धीरे-धीरे पास जाकर खड़ी हुई। देवदास ने एक बार मुख उठाया फिर बहुत देर तक शून्य दृष्टि से जल की ओर देखते रहे। पार्वती ने कहा- 'देव दादा, मुझे कुछ कहते हो?'

देवदास ने किसी ओर देखकर कहा- 'हूं, बैठो।'

पार्वती बैठी नहीं, सिर नीचा किये खड़ी रही। किन्तु जब कुछ देर तक कोई बातचीत नहीं हुई, तो पार्वती ने धीरे-धीरे एक-एक पांव घाट की ओर बढ़ाना आरंभ किया। देवदास ने एक बार सिर उठाकर उसकी ओर देखा फिर जल की ओर देखकर कहा- 'सुनो!'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book