आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
बुद्धिमान तथा दूरदर्शी मनुष्यों की यह रीति होती है कि तत्काल ही किसी विषय पर अपनी दृढ़ सम्मति प्रकट नहीं करते - एक ही पक्ष को लेकर विचार नहीं करते, एक ही पक्ष को लेकर अपनी धारणा स्थिर नहीं करते, वरन दोनों पक्षों को तुलनात्मक दृष्टि से परीक्षा करते है और तब कोई अपना गंभीर मत प्रकट करते हैं। ठीक इसके विपरीत एक श्रेणी के और मनुष्य होते हैं, जिनमें किसी विषय पर विशेष विचार करने का र्धर्य नहीं रहता। ये एकाएक अपनी भली-बुरी सम्मति स्थिर कर लेते हैं। किसी विषय में डूबकर विचार करने का श्रम ये लोग स्वीकार नहीं करते, केवल विश्वास के बल चलते हैं। ये लोग संसार में किसी कार्य को न कर कसते हों, यह बात नहीं है, वरन् काम पड़ने पर समय-समय पर ये लोग औरों की अपेक्षा अधिक कार्य करते हैं। ईश्वर की कृपा होने से ये लोग उन्नति के सवोंच्च शिखर पर प्राय: देखे जाते हैं और न होने से अवनति की गंभीर कन्दरा में आजन्म के लिए पड़े रहते हैं, न उठ सकते हैं, न बैठ सकते हैं, और न प्रकाश की ओर देख सकते हैं, निश्चल, मृत, जड़पिंड की भांति पड़े रहते हैं। देवदास भी इस श्रेणी के मनुष्य थे।
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