लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690
आईएसबीएन :9781613014639

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा


पार्वती ने हंसकर कहा-'मनो बहिन, तुम झूठ ही माथे में सिन्दूर पहनती हो। यह भी नहीं जानती कि किसको स्वामी कहते हैं। वे मेरे स्वामी न होने पर भी मेरी लज्जा के स्वामी हैं। उनसे ऐसा करने के पहले ही मैं मर न जाऊंगी! इसे छोड़, जो मनुष्य मरने पर उतारू है, क्या वह यह देखता है कि विष कडुवा है या मीठा। उनसे मेरा कोई भी परदा नहीं है।'

मनोरमा उसके मुंह की ओर देखती रही। कुछ देर बाद पूछा-'उनसे क्या कहोगी? यह कहोगी कि मुझे अपने चरणों में स्थान दो?

पार्वती ने सिर हिलाकर कहा-'ठीक यही कहूंगी, बहिन?'

'और यदि वे स्थान न दें?'

इसके बाद पार्वती कुछ देर तक चुप रही, फिर कहा-'उस समय की बात नहीं जानती।'

घर लौटते समय मनोरमा ने मन-ही-मन सोचा, धन्य साहस, धन्य हृदय-बल! यदि मैं मर भी जाऊं तो भी यह बात मुंह से कभी निकाल नहीं सकती।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book