लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690
आईएसबीएन :9781613014639

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा

8

बात सत्य है। इसी से तो पार्वती ने कहा कि यह माथे में सिन्दूर और हाथ में चूड़ी पहनना व्यर्थ है। लगभग एक बजे रात का समय है, तब भी मलिन ज्योत्स्ना आकाश के अंग से लिपटी हुई है। पार्वती चादर से सिर से पैर तक अपने अंग को ढंककर दबे पांव सीढ़ी से नीचे उतर आई। चारो आंख खोलकर देखा - कोई जाग तो नहीं रहा है। फिर दरवाजा खोलकर नीरव-पथ में आकर खड़ी हुई। गांव का मार्ग एकदम निस्तब्ध, एकदम निर्जन था-किसी से भेंट होने की आशंका नहीं थी। वह बिना किसी रुकावट के जमीदार के मकान के सामने आकर खड़ी हुई। ड्योढ़ी पर वृद्ध दरबान कृष्णसिंह खाट बिछा, तुलसीकृत रामायण पढ़ रहे थे। पार्वती को प्रवेश करते देखकर उसने नेत्र नीचे किये ही पूछा-'कौन है?'

पार्वती ने कहा-'मैं।'

दरबानजी ने समझा कि कोई स्त्री है। दासी समझकर फिर कोई प्रश्न नहीं किया और गा-गाकर रामायण पढ़ने में निमग्न हो गये। पार्वती चली गयी। गरमी के कारण बाहरी आंगन में कई नौकर सो रहे थे; उनमें से कितने ही पूर्ण-निद्रित और कितने ही अर्द्ध-जाग्रत थे। नींद की झोंक में एकाध ने पार्वती को जाते देखा, लेकिन दासी समझकर किसी ने कुछ रोक-टोक नहीं की। पार्वती निर्विघ्न सीढ़ी से होकर ऊपर कोठे पर चली गयी। इस घर का एक-एक कमरा और एक-एक कोना उसका जाना हुआ था। देवदास के कमरे को पहचानने में उसे जरा भी देर नहीं लगी। किवाड़ खुला हुआ था और भीतर एक दीपक जल रहा था। पार्वती ने भीतर आकर देखा, देवदास पलंग पर सो रहे हैं। सिर के पास उस समय भी एक पुस्तक खुली पड़ी थी, इससे जान पड़ता है कि वह अभी ही सोये हैं। दिये की टेम को तेज कर चुपचाप देवदास के पांव के पास आकर बैठ गयी। केवल दीवाल पर टंगी हुई घड़ी 'टन-टन' शब्द करती है; इसे छोड़कर सभी सो रहे हैं, सभी जगह सन्नाटा छाया हुआ है। पांव के ऊपर हाथ रखकर पार्वती ने धीरे से कहा-'देव दादा...!'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book