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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689
आईएसबीएन :9781613014455

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


अभी तक ऐसी भी बहुत-सी जायदाद मौजूद थी-जो मुखर्जी और घोषाल-दोनों घरानों के साझे में ही थी। भैरव आचार्य के घर के पीछे गढ़नाम का तालाब तीनों के साझे में ही था। एक जमाना था जब तालाब काफी बड़ा था-लेकिन साझे में, मरम्मत की जिम्मेदारी किसी ने न लेने पर, वह बेचारा निराशा से मर-मिटा और अब एक मामूली गड़ही के आकार का ही रह गया था। अच्छी मछलियाँ कभी उनमें तो होती ही नहीं थीं और न बाहर से ही मँगा कर उसमें छोड़ी जाती थीं। बस दो-एक तरह की साधारण-सी मछलियाँ ही उसमें होती थीं। उस दिन वेणी उसमें से मछलियाँ पकड़वा रहे थे और रमेश को इसका पता भी नहीं था-तभी भैरव ने दौड़ कर इस घटना की उनको सूचना दी।

'गढ़ की सारी मछलियाँ पकड़ी जा रही हैं, सरकार महाशय! अपने आदमी नहीं भेजे, अपना हिस्सा लाने को!'

सरकार ने हाथ की कलम कान में खोंस ली-'पकड़वा कौन रहा है?'

'भला और हिम्मत किसकी हो सकती है! मुकर्जी का पछैया दरबान है और वेणी बाबू का एक नौकर है। आपका कोई आदमी वहाँ नहीं देखा, तभी कहने आया हूँ कि जल्दी भेजिए वहाँ किसी को!'

'ले जाने दो, हमारे बाबू को मांस-मछली से घृणा है।'

'उन्हें घृणा है, तो इसमें अपना हिस्सा भी छोड़ बैठेंगे?'

'चाहते तो हम भी सभी हैं, उसमें से हिस्सा लेना-और अगर बड़े बाबू मौजूद होते, तो वे लेकर ही रहते। लेकिन हमारे छोटे बाबू तो इस प्रवृत्ति के नहीं हैं!'

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