आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
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श्राद्धवाले दिन विश्वे्श्वपरी के व्यवहार की चर्चा, आस-पास के दस-पाँच गाँव तक में फैल गई। वेणी की हिम्मत नहीं थी कि उसके लिए वह उनसे कुछ कहे। तभी वह जा कर मौसी को बुला लाया और वास्तव में उन्होंने विश्वे श्व री को वह खरी-खोटी सुनाई, कि जिस तरह सुना जाता है कि पहले कभी तक्षक नाग ने अपना एक दाँत गड़ाकर ही, पीपल के पेड़ को जला कर राख कर दिया था; उसी तरह उनका शरीर जल कर राख तो नहीं हुआ, पर उसकी जलन से वे तिलमिला जरूर गईं। उन्होंने समझ तो लिया कि उनके सुपुत्र के ही षडयंत्र से उनका यह अपमान हुआ है, तभी उसका खयाल कर, उसे चुपचाप पी गईं, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर उन्होंने किसी भी बात का उत्तर दिया, तो पुत्र की पोल खुल जाएगी और रमेश भी उसे सुनेगा। इस विचार-मात्र ने ही उन्हें शर्म से पानी-पानी कर दिया था।
पर रमेश के कानों तक बात पहुँच ही गई थी। रमेश को यहाँ तक तो खतरा था कि ताई जी और वेणी भैया में उसे लेकर काफी कहासुनी होगी; पर उन्हें स्वप्न में भी वेणी से यह आशा नहीं थी कि वह इतनी नीचता तक भी पहुँच सकता है कि एक अन्य घर की स्त्री को बुला कर अपनी माता का ही अपमान कराए! इसका विचार करते ही रमेश के गुस्से की सीमा न रही और उनके मन में आया कि अभी, इसी समय वेणी के घर जा कर, जो भी कटु वचन कहा जा सके जी खोल कर सुना आए। लेकिन उससे तो ताई जी का ही और अधिक अपमान होगा-यही सोच कर वे नहीं गए।
पिछले दिन मास्टर साहब तथा दीनू भट्टाचार्य जी से रमा के संबंध में सुन कर, उसके प्रति उनकी भावना काफी उच्च बन चुकी थी। ताई जी के अलावा, इस अंधकार के साम्राज्य में उन्हें दूसरी प्रकाश-किरण मुकर्जी के परिवार से ही दीख रही थी। इससे उन्हें प्रसन्नता बड़ी हुई थी, लेकिन ताई जी के अपमान की घटना ने उनके मन में रमा के प्रति एक अजीब घृणा भर दी और अब तक जहाँ उसे प्रकाश दिखाई देता था, वहाँ उसे घृणित घोर अंधकार दिखाई पड़ने लगा। उन्हें पूरा विश्वाास हो गया था कि रमा और उनकी मौसी ने मिल कर, वेणी का पक्ष लेकर उनके संबंध में ही ताई जी का अपमान किया है; पर चाह कर भी उन्हें अंत तक यह न समझ में आया कि आखिर वह इस अपमान का बदला उससे ले, तो कैसे ले!
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