आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
उनके आवेश को देख कर ताई जी ने संयत-शांत स्वर में कहा-'इनके अलावा, तुम्हारे बड़े भाई भी उसी समाज के प्रमुख अंग हैं।'
रमेश ने इसका कोई उत्तर न दिया। ताई जी ही बोलीं-'इन लोगों की राय से काम करना ही ठीक होगा, रमेश!'
उन्होंने तो अपने जाने काफी दूर की बात सोच कर ही कही थी, पर रमेश अपने आवेश में उसे समझ नहीं सका। बोले-'मेरा यहाँ किसी से भी, किसी प्रकार का द्वेष भाव नहीं है। अभी आप ही ने कहा कि यहाँ दलबंदियाँ हैं, जिनका मेरी समझ में मुख्य कारण व्यक्तिगत द्वेष ही है। फिर भला मैं कैसे किसी को न्यौते से अलग कर सकता हूँ?'
ताई जी ने जरा हँसते हुए स्वर में कहा-'मैं भी तो कुछ तेरी भलाई सोच कर ही कह रही हूँ। तेरी माँ की जगह हूँ मैं! मेरी बात न मानना भी तो ठीक नहीं!'
'पर मैं तो सभी को बुलाने का निश्च'य कर चुका हूँ।'
ताई जी ने खिन्न होकर कहा-'तब तो फिर मेरी आज्ञा लेने नहीं आए, सिर्फ मुँह-दिखावा ही करने आए हो!'
रमेश ने उनके स्वर से समझ लिया कि वे खिन्न हो गई हैं। पर अपना निश्च य नहीं छोड़ा उन्होंने। बोला-'मुझे तो आशा थी कि मेरा जो काम ठीक होगा उसे आपका आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होगा पर...।'
बीच में ही ताई जी ने कहा-'पर तुम्हें यह भी तो सोचना चाहिए था कि मैं अपनी संतान का विरोध नहीं कर सकती!'
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