आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
रमेश इस चोट से विह्वसल हो उठा। कल से वह ताई को हर मायने में अपनी माँ ही मानने लगा था, पर यह सत्य है कि उससे पहले और अधिक गहरा स्थान उनकी संतान ने उनके हृदय में बना रखा है और यह विचार उसकी आशा पर आघात करने लगा। थोड़ी देर मौन रह कर, उठ कर खड़े होते हुए उन्होंने कहा-'मैं यह जानता था, तभी कहा था कि मेरे किए जो कुछ हो सकेगा, अपने ही आप कर लूँगा! आप कष्ट न करें! आपको बुलाने का दुस्साहस नहीं किया था मैंने।'
ताई जी सुन कर मौन रहीं। जब रमेश उठ कर जाने लगा तब बोलीं, 'तो फिर अपने भण्डार की ताली भी लेते जाओ, बेटा!'
और ताली ला कर उन्होंने रमेश के पैरों पर फेंक दी। रमेश स्तब्ध खड़ा देखता रहा। थोड़ी ही देर बाद ताली उठा कर धीरे-धीरे बाहर चले गए। कुछ घण्टे पहले ही उनके दिल ने कहा था-'अब किसी बात का डर नहीं, ताई जी सब सम्हाल लेंगी!' पर एक रात न बीती कि उसी दिल को एक ठण्डी आह भर कर कहने पर विवश होना पड़ा-'नहीं, नितांत अकेला हूँ मैं! कोई नहीं है इस संसार में मेरा! ताई जी भी नहीं!!!'
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