आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
रमेश के स्वर ने उन्हें विस्मय में डाल दिया, कुछ देर बाद बोलीं-'तब तो कहते थे कि इस समय यही तुम्हारे सब कुछ हैं। खैर, छोड़ो, उस बात को! हम औरतों की भला उस मामले में क्या चलेगी? यहाँ तो सभी जगह यही खटराग है कि यह वहाँ नहीं खाता, तो वह यहाँ नहीं खाता! यही सबसे बड़ी मुश्किल अटका करती है, हर काम के समय।'
रमेश ने भी दो-चार दिन में ही जान लिया था कि कैसी-कैसी बातें उठती हैं यहाँ पर। पूछा उन्होंने-'ऐसा क्यों होता है, ताई जी?'
'यहाँ रहने पर सब समझ लोगे! यहाँ बात-बात में झूठे-सच्चे दावेदार बन कर अदालत-कचहरी तक होती है। यही राग चलता रहता है, बेटा! अगर मैं पहले से तुम्हारे यहाँ पहुँच जाती, तो कभी इतना तूल न करने देती। अब तो यही चिंता है कि श्राद्ध के दिन क्या होगा!'
रमेश ताई जी का मंतव्य समझ न पाया, उद्विग्न हो बोला-'पर मुझे इन दलबंदियों से क्या मतलब? अभी कल तो मैं आया हूँ, यहाँ मेरी किसी से क्या दुश्मनी है? इसलिए मैं इन दलबंदियों का विचार न कर, सभी ब्राह्मणों और गरीब शूद्रों को न्यौता दूँगा। पर आपकी आज्ञा तो लेनी होगी।'
कुछ देर तक सोचते रहने के बाद ताई जी ने कहा-'मैं तो कुछ भी नहीं कह सकती इस तरह से! कहूँ भी तो बड़ी हाय-तौबा मच जाएगी। पर इसके ये मानी नहीं कि तुम गलत कहते हो! तुम्हारा कहना भी ठीक है, पर इतने भर से ही काम नहीं चल सकता। जिसे समाज ने अपने से अलग कर दिया है, तो उसे नहीं बुलाया जा सकता। समाज का किया-चाहे गलत ही हो-मानना होगा! न मानने से तो समाज चल ही नहीं सकता!'
इस समाज के कर्णधारों की उच्चता का परिचय रमेश को अभी-अभी बाहर की घृणास्पद बातों से मिल चुका था, जो उन्हें विशेष ग्लानि से अभिभूत कर रहा था। उन्होंने उसी आवेश में कहा-'यहाँ के समाज के कर्णधार यदि धर्मदास और गोविंद ही हैं, तो उसमें सचमुच ही किसी तरह की शक्ति न रहे, तभी अच्छा है!'
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