आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
गोविंद की पहली बातें भी रमेश ने सुन ली थीं और उसके पहुँचने पर उसने जो बातों का रुख पलटा था-वह भी देखा था, तभी उनका मन मारे घृणा के भर उठा था। जाते समय यही सोचते हुए वह अब आधी दूर निकल आया, तब वह वहाँ से फिर लिया। उस समय भी वहाँ खूब जोर से बातें चल रही थीं। पर अब के वहाँ खड़े हो कर सुनने की इच्छा न हुई। सीधे अंदर घुसते चले गए और अंदर जा कर ताई जी को पुकारा।
उस समय ताई जी अकेली, चुपचाप, अँधेरे में, सामनेवाले बरामदे में बैठी थीं। रमेश की आवाज ने उन्हें चौंका दिया, बोलीं-'इतनी रात को कैसे, बेटा?'
रमेश पास पहुँच गया तो उन्होंने कहा-'रुको, मैं किसी से रोशनी लाने को कह दूँ!' पर रमेश दीया लाने को मना कर, वहीं बैठ गया।
ताई जी ने फिर अपना प्रश्नर उठाया-'इतनी रात में कैसे आए, बेटा!'
रमेश ने सहज सरल स्वर में कहा-'निमंत्रण नहीं दिया है अभी तक किसी को, उसी बारे में पूछने आया हूँ।'
'यह तो बड़ा विकट काम है। अच्छा! गोविंद वगैरह सब लोग क्या कहते हैं?'
'मैं तो आज जो आप कहेंगी सो करूँगा! न मैं जानता हूँ और न जानना ही चाहता हूँ कि वे लोग क्या कहते हैं?'
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