जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
शहीद
अल्फेड पार्क में म्योर सेन्ट्रल कालिज के सामने कौरनिल रोड से कुछ हटकर, इन्डियन प्रेस से लगभग सौ गज की दूरी पर, एक पेड़ के नीचे बैठे हुए तिवारी और चन्द्रशेखर आजाद बातें कर रहे थे।
''आज न जाने मेरा मन अशान्त सा हो रहा है? सब कुछ सूना-सूना सा दिखाई पड़ता। फिर भी इस नगर की चप्पा-चप्पा भूमि के प्रति मेरे हृदय में कुछ मोह भी उत्पन्न हो रहा है।''
''भइया! आज तुम इस नगर को छोड़कर दूर जा रहे हो न, इसी से ऐसा मालूम हो रहा है।'
''मैं अपने देश के ही दूसरे कोने में तो जा रहा हूं। कहीं विदेश तो जा ही नहीं रहा।''
''यह तो ठीक है, हमारी मातृभूमि बहुत विशाल है। दक्षिण उसी भारत का ही एक अंग है। फिर भी इस नगर की भूमि से आपका विशेष सम्पर्क रहा है।''
''मैं इससे पहले भी बहुधा जाता ही रहा हूं। तब तो कभी ऐसा अनुभव नहीं हुआ?''
''समय समय की वात है, कभी होता है, कभी नहीं भी होता। फिर अब तो आपके वह साथी भी नहीं रहे। इसलिए मन में कुछ दुर्बलता आ जाना भी स्वाभाविक ही है।''
यहाँ भी आजाद के मन में तिवारी की बातें ठीक ही जचीं। वह सोचने लगे 'वास्तव में तिवारी मेरा बहुत शुभचिन्तक है। तभी तो वह मेरी हर मनोदशा का अनुमान भी ठीक-ठीक ही लगा लेता है।'
''अव दस बजने में केवल दस मिनट ही रह गए हैं। सेठ आने ही वाला होगा!'' आजाद ने कहा।
''हाँ, अब मैं उधर ही जाने की सोच रहा हूं। वह साढ़े दस बजे तक अवश्य ही आ जाएगा।''
एकाएक आजाद की दृष्टि कौरनिल रोड की ओर गई। उन्होंने देखा, वहाँ अनगिनत की संख्या में पुलिस खडी थी।
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