लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685
आईएसबीएन :9781613014318

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

149 पाठक हैं

यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

'किन्तु गुरुदेव! मैं हिन्दू हूँ।'

'मान लो, तुम अपना धर्म बदलते हो, मुसलमान हो जाते हो। क्या केवल इसी अन्तर से तुम्हारा पुनर्जन्म रुक जायेगा?'

सदानन्द की बोलती बन्द हो गई।

किन्तु वह झुक नहीं रहा था। उसके चेहरे पर समर्पण का नहीं, तिलमिलाहट का भाव था।'

गुरुदेव ने जारी रखा-

''जन्म-जन्मान्तर का सिद्धान्त केवल एक रोमांचक कल्पना है। धर्म के साथ जुड़कर यह कल्पना रूढ़ हो गई है। अभी मैंने तुमसे कितने मामूली सवाल किए। उन मामूली सवालों के आघात से ही मिथ्या कल्पनाओं का यह महल ढह जाना चाहिए लेकिन रूढ़ संस्कारों के कारण तुम्हें तिलमिलाहट हो रही है। तुम अपने असत्य से ही लिपटे रहना चाहते हो। यही तो है दम्भ! मैं दम्भपूर्ण आचरण को पाप कहता हूँ। अब तुम्हीं सोचो कि रंजना के साथ तुम्हें विवाह करना चाहिए कि नहीं। क्या इस विवाह में निष्ठा का समावेश हो सकेगा? निष्ठा से किया हुआ कर्म पुण्य है। निष्ठा के विरुद्ध जाना पाप है। यदि तुम अपनी गृहस्थी पाप की नींव पर खड़ी करोगे, तो कितने सुखी रहोगे? रंजना तुम्हारे साथ कितनी सुखी रह सकेगी? ''

उत्तर सदानन्द के पास नहीं थे।

गुरुदेव ने उसे सत्य दिखाया था, किन्तु वह आँखें मूँदे हुए था। उसके चेहरे से स्पष्ट झलक रहा था कि वह कोई निर्णय नहीं कर पाया है।

जब वह चला गया, चैतन्यानन्द जी के चेहरे पर उदासी उभर आई। वह बुदबुदाहट में बोले, 'कायर है।'

रंजना मिलने आई।

गुरुदेव के पाँव छूकर, आशीर्वाद पाकर, नजरें झुकाकर, अपराधिनी की तरह वह सामने बैठी।

गुरुदेव ने उससे वह सब कहा, जो सदानन्द से कहा था। सदानन्द जैसी ही दशा उसकी भी थी। सुन वह सब रही थी। समझ भी सब रही थी। स्वीकार वह कुछ नहीं कर रही थी।

चैतन्यानन्द जी ने अन्त में कहा-

'देखो, रंजना! धर्म-ग्रन्थों का अध्ययन तुमने कितना किया है, मुझे नहीं मालूम। यदि हम मानकर चलें कि आत्मा सचमुच होती है और पुनर्जन्म भी होता है, तो भी क्या तुम जानती हो कि सभी धर्म-ग्रन्थों में आत्मा को स्मृतिविहीन माना गया है? किसी बात को याद रखना मस्तिष्क का काम है, आत्मा का नहीं। आत्मा जब शरीर छोड़कर जाती है, तब कोई स्मृति अपने साथ लेकर नहीं जाती। इसी प्रकार, आत्मा जब किसी शरीर में प्रवेश करती है, तब भी अपने साथ कोई स्मृति लेकर प्रवेश नहीं करती। फिर से दोहराता हूँ यह मैं नहीं कह रहा हूँ। मेरे अनुसार तो पुनर्जन्म होता ही नहीं। हमारे धर्म-ग्रन्थों ने आत्मा के बारे में एक स्वर से जो कहा है, उसी को मैंने अभी दोहराया है। अब.... बड़ा ही सीधा और सरल सवाल जो उठता है, वह यह है कि..... आत्मा को जब स्मृति मिली ही नहीं है, तो... पिछले जन्म की आत्माएँ इस जन्म में एक-दूसरे को पहचानती कैसे हैं? या... इस जन्म की आत्माएँ, अगले जन्म में, एक-दूसरे को कैसे पहचानेंगी? तुमने सदानन्द को कैसे पहचाना? सदानन्द ने तुम्हें कैसे पहचाना? क्या आपस की यह पहचान केवल एक भ्रम नहीं?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai