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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685
आईएसबीएन :9781613014318

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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

बीस

मिथ्या कल्पनाओं का महल

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'सदानन्द!' गुरुदेव ने कहा- ''समाज की नहीं, अभी तो केवल अपनी बात कहो। क्या तुम्हें और रंजना को पूरा विश्वास है कि तुम दोनों आपस में पाप नहीं, प्रेम ही करने को उत्सुक हो? ''

'जी हाँ गुरुदेव!' सदानन्द के स्वर में भरपूर विश्वास लरज रहा था।

''तुम्हें पता भी है, पाप क्या और पुण्य क्या है? प्रेम की शक्ति को तुम पहचानते भी हो?' गुरुदेव के स्वर में मैंने नाराजगी जैसा आभास पाया। मैंने सदानन्द की ओर देखा। वह भी उलझन में पड़कर चुप रह गया था।

चैतन्यानन्द जी ने जारी रखा-

''रंजना के साथ तुम विवाह करो, इसमें कोई पाप नहीं है, किन्तु तुम अपने दम्भ को नहीं छोड़ रहे हो। पाप इसी दम्भ में है। क्या है तुम्हारा दम्भ? यही कि तुम प्रायश्चित की भावना से विवाह करना चाहते हो। यह केवल एक बहाना है।''

''अपने-आपको पहचानो। मैं हमेशा हर किसी से कहता हूँ 'अपने-आपको पहचानो।' सदानन्द! तुम पुरुष हो। रंजना स्त्री है। इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए यदि तुम विवाह करोगे, तो कोई पाप न होगा। प्रकृति के अनुसार चलने में कोई पाप नहीं है। प्रकृति का द्रोह करने में अवश्य पाप हो सकता है।''

''किन्तु गुरुदेव! प्रायश्चित की भावना मुझमें सचमुच है।''

''तो रंजना को अपनी बेटी मानो। उसका विवाह किसी अन्य पुरुष से कर दो। कन्या-दान करो।''

सदानन्द हामी न भर सका।

''तो यह मान लो कि नर-नारी के आदिम आकर्षण के कारण तुम दोनों पति-पत्नी बनना चाहते हो।''

''हमारा आकर्षण तो पूर्व-जन्म का है, गुरुदेव! '' - सदानन्द ने गहरे आत्मविश्वास के साथ कहा।

''तुम में इतना भी साहस नहीं है कि अपनी वासना को स्वीकार कर सको। तुम समाज के विरुद्ध जाने का साहस कहाँ से लाओगे? गुरुदेव विद्रूप से मुस्कराए, 'रही बात पूर्वजन्म की। पूर्वजन्म तो होता ही नहीं। मैं तुमसे एक मोटा सवाल पूछता हूँ। यदि पूर्व-जन्म या पुनर्जन्म हो सकता, तो सभी मनुष्यों का होता। किसी भी देश, किसी भी काल और किसी भी धर्म के सभी मनुष्यों का पूर्वजन्म होता और पुनर्जन्म भी होता। केवल हिन्दुओं का ही पूर्वजन्म और पुनर्जन्म क्यों होता है? क्या तुमने कभी किसी मुसलमान को अपने पूर्वजन्म या पुनर्जन्म की चिन्ता करते देखा है?''

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