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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685
आईएसबीएन :9781613014318

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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

उन्नीस

विकट प्रश्न

 9685_19

'यह मेरा भानजा सदानन्द है।' गुरुदेव के भक्त महाशय ने उस पुरुष का परिचय दिया। फिर युवती की ओर संकेत करते हुए बोले. 'और यह है...। मानो उलझन में पड़ गये हों, इस तरह वह रुक गये। फिर बोले, यह सदानन्द की पुत्र-वधू है - रंजना। पिछले ही साल यह विधवा हुई है।'

युवती ने पलकें उठाकर गुरुदेव की ओर देखा।

गुरुदेव उसी की ओर निहार रहे थे।

युवती ने दृष्टि झुका ली।

भक्त महाशय ने अचानक कहा, 'ये दोनों शादी करना चाहते हैं।'

मैं चौंका।

अम्बिका दीदी भी चौंके बिना न रह सकीं।

गुरुदेव शान्ति से रंजना की ओर ही देखे जा रहे थे। रंजना ने दुबारा पलकें उठाईं, तो नजर गुरुदेव से मिल गई। गुरुदेव धीर-गम्भीर स्वर में बोले, 'इनकी शादी में अनुचित कुछ भी नहीं है।'

'लेकिन गुरुदेव!' भक्त महाशय बोल उठे. एक विधुर ससुर अपनी विधवा पुत्र-वधू के साथ अगर शादी कर लेगा, तो समाज में ऐसी थू-थू होगी कि....।'

''ससुर-पुत्रवधू, बाप-बेटी, भाई-बहन.... ये सब तो मनुष्य के बनाये रिश्ते हैं। प्रकृति का रिश्ता तो एक ही है - स्त्री और पुरुष।''

''लेकिन, गुरुदेव! समाज आपके जितना उदार नहीं है।''

चैतन्यानन्द जी खिलखिलाकर हँस पड़े, ''समाज उदार हो या न हो, आप उदार नहीं हैं। क्या अपने वैधव्य की जिम्मेदारी इस युवती की है? पुत्र-वधू की ओर आकर्षित हो जाना क्या कोई पाप है?'

'गुरुदेव!' यजमान ने कहा, 'ये दोनों अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं।' कर्म, कर्मों का फल, पिछला जन्म और अगला जन्म - ये सब केवल भ्रम हैं। ऐसी बातों में यकीन करना सरासर मूर्खता है। भाग्यवादी होने में मैं मूर्खता की चरम सीमा देखता हूँ। प्रकृति ने इस युवती को माँ बनने का अधिकार दिया है। समाज उसे इस अधिकार से वंचित कैसे कर सकता है?'

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