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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685
आईएसबीएन :9781613014318

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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

फिर से उन्होंने अपनी जीभ निकालकर, उसके छोर से अपनी नाक को छूआ। जैसा कि दीदी ने मुझे बताया था. गुरुदेव जव बहुत प्रसन्न होते, तब ऐसा करते थे। उनका स्नेह भरा हाथ मेरे सिर पर फिरने लगा। उन्होंने मेरे बालों में उँगलियाँ डाल दीं। स्नेह से कुछ बाल खींचे भी।

दो दिनों बाद-

एक प्राइवेट एम्बुलेन्स गाड़ी में, जिसका इन्तजाम गुरुदेव के एक भक्त ने किया था, मैं दीदी और दीदी का वही नौजवान भाई, घायल गुरुदेव को लेकर जोधपुर की दिशा में चल पडे। वहाँ हमने गुरुदेव के उसी भक्त के यहाँ डेरा डाला जिसने एम्बुलेन्स का इन्तजाम किया था।

जोधपुर में एक बडा ही उलझनपूर्ण सामाजिक प्रश्न हमारा इन्तजार कर रहा था।

जिस भक्त के यहाँ हमने डेरा डाला था, वह कपडे के बड़े व्यापारी थे। आलीशान कोठी, अनेक कारें, भरापूरा परिवार। भक्त महाशय साठ वर्ष के आसपास रहे होंगे। गुरुदेव के दर्शन करने लोगों की भीड इकट्ठी होने लगी। मठ में एकान्त में रहने के आदी चैतन्यानन्द जी? का व्यक्तित्व, जनता-जनार्दन के बीच और अधिक प्रचण्ड व दिव्य हो उठा। दर्शनार्थियों को मानो वह आँखों-आँखों में शक्ति का दान दे सकते थे। उनके सान्निध्य मात्र से लोगों की समस्याओं का जैसे अन्त आ जाता।

गुरुदेव का घाव इतना गहरा था कि औसत आदमी तो अपनी जगह से हिल भी न पाता; नींद की दवाएँ लेकर रात-दिन सोता रहता। गुरुदेव इसके ठीक विपरीत थे। एक स्थानीय डाँक्टर उन्हें रोज आकर देखता था। यह गुरुदेव की मानसिक शक्ति ही थी, जो उन्हें उतना चैतन्य रखे हुए थी। मैं और अम्बिका दीदी जी-जान से उनकी सेवा में जुटे हुए थे।

दूसरी रात्रि को, जब बाहर के दर्शनार्थी जा चुके थे, कपड़े के व्यापारी उन भक्त महाशय ने कमरे में प्रवेश किया। उन्के साथ लगभग चालीस वर्ष का एक पुरुष और अठारह वर्ष की एक युवती थी। साँवली होते हुए भी, युवती में सुन्दरता की कमी नहीं थी। वह कोई आभूषण पहने हुए नहीं थी। कलाइयों में सोने की केवल दो पतली चूड़ियाँ थीं। चालीस वर्ष का वह पुरुष ऐसी वेशभूषा एवं केश-विन्यास में था, जैसे वह अपनी उम्र छिपाना चाहता हो। गुरुदेव को नमस्कार कर दोनों एक तरफ खड़े हो गये।

एक ऐसा विकट प्रश्न लेकर वे आये थे, जो उस वक्त मेरे लिए कल्पनातीत ही था....।

 

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