लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685
आईएसबीएन :9781613014318

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

149 पाठक हैं

यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

यजमान ने कई दलीलें दीं, जिनका मूल स्वर यह था कि ऐसी शादी की इजाजत देने से उनकी जो बदनामी होगी, उससे उनका व्यापार ठप्प हो जायेगा। सदानन्द और रंजना उनकी इजाजत के बिना कोई कदम नहीं उठाना चाहते थे, किन्तु वह हद-से-हद केवल इतनी इजाजत देने को तैयार थे कि रंजना पुनर्विवाह कर ले किसी अन्य पुरुष के साथ। अपने ससुर के साथ तो किसी सूरत में नहीं। आधे घण्टे की चर्चा के बाद गुरुदेव बोले, 'कल मैं, रंजना और सदानन्द. दोनों से अलग-अलग मिलूँगा। अभी आप लोग जाइए।'

वे तीनों चले तो गये, किन्तु अपने पीछे अनेक प्रश्न छोड़ते गये। मैं उन प्रश्नों पर सोचता रह गया।

गुरुदेव ने टोका, ''कर्मों के फल के सिद्धान्त पर सोच रहे हो न?''

'जी हाँ!' मैंने कहा, 'हम भाग्य में विश्वास न करें, न सही. किन्तु कर्मों के फल पर तो विश्वास करना ही होगा न? प्रत्येक कर्म का फल होता ही है।'

चैतन्यानन्द जी बोले- ''किन्तु ये फल पिछले जन्म से इस जन्म में और इस जन्म से अगले जन्म में यात्रा नहीं करते। अभी जो जन्म हुआ है. वही एकमात्र जन्म है। पिछला कोई जन्म नहीं था। अगला कोई जन्म नहीं है। इसीलिए. कर्मों का फल जो मिलना है, इसी जन्म में मिल जाना है। पुनर्जन्म का सिद्धान्त आत्मा के अमरत्व पर आधारित है, किन्तु मैं इस पर विश्वास नहीं करता। मेरे अनुसार, मृत्यु के बाद व्यक्ति की केवल भावनाएँ शेष रह जाती हैं - यानी, मृतक के विचारों को जन-स्मृति में स्थान मिल जाता है। शेष सब नष्ट हो जाता है। गाँधीजी की आत्मा अमर नहीं है, गाँधीजी के विचार अमर हैं। उनकी भावनाएँ अमर हैं। आत्मा उस तरह की अलौकिक चीज है ही नहीं, जिस तरह की हम मान बैठे हैं। आत्मा क्या है, इस पर मैं बाद में बोलूँगा। अभी मैं सदानन्द और रंजना की कथा तुम्हारे सामने रखता हूँ। उन दोनों को केवल निहार कर ही मैंने यह कथा पढ़ ली है। सुनो।''

''जी....। ''

''प्रथम प्रसूति में सदानन्द की पत्नी का अवसान हो गया था।'' गुरुदेव ने बोलना शुरू किया, ''सदानन्द ने ही अपने पुत्र को माँ और पिता, दोनों का प्यार दिया। सदानन्द को जब पता चला कि पुत्र को क्षय रोग है, तब वह सन्नाटे में आ गया। सदानन्द ने पुत्र का विवाह तुरन्त एक युवती से यानी रंजना से कर दिया। सदानन्द की भावना यह थी कि संसार से जाने से पहले उसका पुत्र संसार का सुख भोगकर जाये, किन्तु.... कुण्ठित पुत्र रंजना के साथ सुहागरात भी न मना सका। विवाह के छह माह के भीतर रंजना का पति इस संसार से चला गया। अब... सदानन्द अपनी पुत्र-वधू से विवाह करने का जो इतना इच्छुक है, इसके कई कारण हैं। ऊपरी कारण तो यह है कि सदानन्द प्रायश्चित करना चाहता है। वह सोचता है कि अपने रोगी पुत्र से रंजना का विवाह करके उसने बड़ा अपराध किया है जिसका प्रायश्चित होना ही चाहिए। दूसरा कारण यह है कि रंजना को सदानन्द अपनी दिवंगत पत्नी का ही पुनर्जन्म समझता है। रंजना को पहली बार देखते ही सदानन्द को अपनी दिवंगत पत्नी की याद आ गई थी। कालान्तर में, स्वयं रंजना को भी ऐसा लगने लगा कि वह सदानन्द की दिवंगत पत्नी है। एक ही भ्रम, रंजना और सदानन्द दोनों को एक साथ कैसे हुआ? इसके पीछे केवल संयोग का चमत्कार है।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai