लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685
आईएसबीएन :9781613014318

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

149 पाठक हैं

यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

गुजरते सैनिकों को चैतन्यानन्द जी एवं अम्बिका दीदी देख रहे थे। कुछेक अन्य लोग भी खड़े थे। मुझे और दीदी को जो सज्जन अपनी कार में यहाँ तक लाये थे, उन्हें भी मैंने वही उपस्थित देखा। वह गुरुदेव से कह रहे थे, लडाई का जोर बढने का पूरा खतरा है। सारा गाँव खाली करवा रहे हैं। आप सब भी यहाँ से हट जायें, तो अच्छा। शायद फौज वाले आकर आपको जबरन हटाने का प्रयास करें।'' चैतन्यानन्द जी दूर क्षितिज की ओर ताक रहे थे। अनेक क्षणों तक वह मौन रहे। दृष्टि को क्षितिज पर ही स्थिर रखकर वह बोले, ''माँ की प्यास अभी बुझी नहीं। जिसे जाना हो जाये। हम यहीं रहेंगे। आखिरी दम तक। अम्बिका! क्या तुम जाना चाहती हो?

दीदी ने कहा, ''मैं आपके साथ ही रहूँगी।''

मेरी ओर घूमकर गुरुदेव ने पूछा, ''और तुम? ''

''मैं भी आपके साथ रहूँगा।''

मेरे कन्धे पर हाथ रखकर वह बुदबुदा उठे, ''यह निर्णय ठीक ही रहेगा।' काफी फासले पर एक सूखी नदी का पाट नजर आ रहा था। आड़े-टेढे उठे हुए किनारे के सान्निध्य में सैनिक अपने तम्बू खड़े करने लगे थे। अचानक हवाई जहाज का चीत्कार सुनाई दिया। तेज सायरन बजने लगा। हम लोग सब मन्दिर के भीतर की तरफ दौड़े।

थोड़ी देर में फिर शान्ति छा गई।

'तुम अपनी साधना जारी रखो।' गुरुदेव ने मुझसे कहा, फिर अम्बिका दीदी से बोले, 'इन्हें पाँच दिनों तक सिर्फ दूध ही देना और कुछ नहीं।'

मैं सोचे बिना न रह सका, 'बाप रे! पाँच दिनों तक भूखा कैसे रहूँगा? वह भी केवल दूध पीकर? दूध के नाम से मैं वैसे ही बिदकता हूँ।'

अम्बिका दीदी का स्वर था, 'इकत्तीस दिनों की साधना यदि केवल पाँच दिनों में पूरी करनी हो, तो.......... कष्ट भी तो उठाना होगा।'

'केवल पाँच दिनों में इकतीस दिनों की साधना?''

''हाँ! केवल दूध पीकर साधना करने से साधक को बढ़ा हुआ फल मिलता है।''

''किन्तु गुरुदेव इतने अधैर्य का परिचय क्यों दे रहे हैं?'' मैं पूछे बिना न रह सका।

''मैं भी कल से ही उनके अधैर्य का आभास पा रही हूँ। कारण क्या है, मुझे भी ठीक से समझ में नहीं आ रहा..........। '' दीदी के स्वर में व्यग्रता थी।

मैं फिर से मन्त्र-जाप पर बैठ गया था। जब संध्या पूरी तरह गहरा गई, तब चैतन्यानन्द जी के खड़ाऊँ की आवाज से मेरा ध्यान टूटा। वह सामने आ बैठे और बोले, 'कुछ पूछना चाहते हो?'

''मन्त्र के बिना साधना क्यों नहीं हो सकती?'' मैंने पूछा।

''हो सकती है, असम्भव कुछ नहीं है, लेकिन मन्त्र का सहारा लेना बेहतर रहता है।'' उन्होंने जवाब दिया, ''मन्त्र क्या हैं? मन्त्र केवल विशेष प्रकार के आदेश हैं। आदेश क्या हैं? आदेश यानी सूचना की दिशा और सूचना ही तो मानव के समस्त ज्ञान की नींव है।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai