आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
यथासम्भव पद्मासन लगाकर साधना करनी चाहिए। पद्मासन यदि सम्भव न हो. तो भी सीधे तनकर. तो अवश्य ही बैठना चाहिए। लगातार बैठे रहने की आवश्यकता के कारण, पलाँठ लगाकर या कुर्सी पर भी बैठा जा सकता है। बाहर से न कोई प्रकाश आये, न स्वर। दीया और अगरबत्ती इस प्रकार जलायें कि वे लम्बे समय तक जलते ही रहें। दीया नजर के बिल्कुल सामने रखें। अन्य किसी सामग्री की आवश्यकता नहीं है।
साधना करते समय मन्त्र पर अश्रद्धा कदापि न रखें। यह निर्देश अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। श्रद्धा के बिना, मन्त्र-जाप पूरा होने के बावजूद. कोई सिद्धि नहीं मिलती।
सिद्धि का अर्थ 'चमत्कार' न लगायें। इस साधना से साधक का मन सबल होता है। सबल मन के ही कारण वह दूसरों के मन पर काबू पा लेता है - बस! साधक यदि. दूसरों के मन पर काबू पाने का इच्छुक न हो, तो वह स्वयं अपने मन की सबलता का विकास कर सकता है। इससे अन्य अनेक सिद्धियाँ मिल जाती हैं। कर्ण-पिशाचिनी का मन्त्र मेरे कान में फूँककर दीदी चली गई थीं।
दीपक की लौ पर दृष्टि केन्द्रित करके मैंने मन्त्र का जाप प्रारम्भ कर दिया.........
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