आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
जाप करते समय पूर्ण ध्यान केवल मन्त्र पर केन्द्रित होना अनिवार्य है। इस कारण यह जाप किसी शान्त. एकान्त स्थली में ही करना चाहिए। दीए की लौ को एकाग्रता से देखते हुए जाप करने से ध्यान केन्द्रित करने में आसानी रहती है। यदि ध्यान केन्द्रित करने में दिक्कत हो, तो सबसे पहले ऐसी एकाग्रता का अभ्यास बारम्बार करने के बाद ही मन्त्रों के जाप पर आना चाहिए। मात्र एकाग्रता एवं चित्त की शान्ति के लिए ये प्रयोग कई दिनों तक भी करते रहना पड़ सकता है।
प्रथम दिन के उपवास के बाद, शेष अवधि में, केवल सफेद रंग की वस्तुएँ खायें या पीयें। वह भी, दिन में केवल एक बार। दूध, दही, चावल लिए जा सकते हैं। आराधना के समय वस्त्र भी सफेद और ढीले पहनें।
चालीस दिनों में सवा लाख मन्त्रों को पूरा करने के लिए रोज 3125 मन्त्र-जाप करने का हिसाब बनता है। इतने मन्त्र जपने के लिए रोज 12 से 14 घण्टे साधना में बैठना होगा। यदि यह साधना 40 के बजाय 80 या 100 दिनों में की जाये, तो बेहतर रहेगा, क्योंकि प्रतिदिन साधना के घण्टे बढाकर दिनों की संख्या घटाने से, अन्तिम दौर में बहुत त्रास अनुभव होता है।
साधना के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करने से, बढ़े हुए आत्म-बल के कारण, सिद्धि में स्थायित्व आता है। स्त्रियों को मासिक धर्म के दिनों में एकाग्रता सम्बन्धी अड़चनों के कारण, साधना रोक लेनी चाहिए।
कर्ण-पिशाचिनी देवी की आकृति की कल्पना, अपनी रुचि एवं आवश्यकतानुसार की जा सकती है। हमेशा सौम्य आकृति ही कल्पना में रखनी चाहिए।
यदि किसी कारणवश, शुरू की हुई साधना अधूरी छूट जाने लगे, तो घबराने की बिल्कुल जरूरत नहीं। अधूरी साधना से कोई हानि नहीं होती, सिवा इसके कि मन ही गहरी हार और ग्लानि अनुभव करता है। यह अनुभव भी प्राय: शान्त हो जाता है। कुछ गुरु, साधना अधूरी छूट जाने के दुष्परिणाम बयान कर, अपने शिष्य को बहुत डरा देते हैं। इस डर के ही कारण शिष्य को दुष्परिणाम भुगतना पड़ सकता है। न डरने पर कुछ नहीं होता।
श्मशान में जाकर मन्त्र जपना या शव-साधना करना, ये अघोरियों के तरीके हैं। निसन्देह इनसे तुरन्त सिद्धि मिलती है, किन्तु मैं किसी भी पाठक को ऐसा करने की सलाह नहीं देता। अघोर साधना के लिए दक्ष गुरु के निर्देशन को परम आवश्यक समझना चाहिए।
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