आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
''अब, मैं जो कहूँ उसे दोहराते जाओ।'
''जी.......। ''
''मैं ईश्वर को साक्षी रखकर, सौगन्धपूर्वक आज प्रतिज्ञा करता हूँ।''
''मैं ईश्वर को साक्षी रखकर, सौगन्धपूर्वक, आज प्रतिज्ञा करता हूँ।'' दोहराते समय मेरी धड़कन बढ़ चली थी।
''कि मैंने चित्रकार बनने की अपनी अभिलाषा की आहुति दे दी है..........।''
''कि मैंने चित्रकार बनने की अपनी अभिलाषा की आहुति दे दी है..........।''
''कि मैं दैवी शक्ति पाने के लिए जो साधना करूँगा....।''
''उसका उपयोग केवल मानव-कल्याण में करूँगा......।''
''उसका उपयोग केवल मानव-कल्याण में करूँगा.......।''
''और इस साधना की गुप्तता की रक्षा अपने प्राणों की तरह ही करूँगा।''
''और इस साधना की गुप्तता की रक्षा अपने प्राणों की तरह ही करूँगा।''
चैतन्यानन्द जी ने बकरे के रक्त में अँगूठा डुबाकर मेरे मस्तक पर तिलक कर दिया।
अब उनकी नजरें अम्बिका दीदी पर ठहरने लगीं थीं, ''अम्बिका! इसे कर्ण-पिशाचिनी का परिचय दे दो। फिर, साधना की विधि समझा दो।''
खड़ाऊँ बजाते हुए वह गम्भीरता से चले गये।
और एक साधना की शुरूआत हुई...।
मैं अम्बिका दीदी के सामने शिष्य मुद्रा में बैठा था। कर्ण-पिशाचिनी का प्रारम्भिक परिचय देने के लिए वह बोलीं-
''इस चराचर जगत में मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है, जिसके पास मन है। पशुओं के पास, पक्षियों के पास, कीट-पतंगों या कीटाणुओं के पास मन नहीं है। वे केवल कुदरती प्रेरणा से काम करते हैं। वनस्पति जगत में भी मन होने का प्रश्न नहीं उठता। मन केवल मनुष्य के पास है। इसी मन के कारण मनुष्य में कल्पना करने, संकल्प करने की क्षमता है। प्रत्येक आविष्कार, प्रत्येक सिद्धि के पीछे मनुष्य की कल्पना-शक्ति ही तो है। सबसे पहले मन कल्पना करता है। उसके बाद बुद्धि और प्रेरणा उस कल्पना को साकार करते हैं। हवाई जहाज कैसे बना? सबसे पहले मनुष्य के मन ने उसकी कल्पना की। फिर, मनुष्य की बुद्धि और प्रेरणा ने उस कल्पना को कार्यान्वित किया, साकार किया। यों, प्रत्येक सर्जनात्मक कार्य के पीछे कल्पना की शक्ति है.......। ''
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