आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
दस
अभिलाषा की आहुति
अनायास मेरे मुँह से एक ऐसा सवाल निकल गया, जिसे बचकाना ही कहा जायेगा, 'गुरुदेव! आपके ही जितनी सिद्धियाँ पाते-पाते कितना वक्त गुजर जायेगा? '
पूछने के साथ मैं बुरी तरह झेंप गया।
''एक क्षण से एक युग के बीच, कितना ही वक्त लग सकता है।'' गुरुदेव ने जवाब दिया।
कुछ देर खामोशी छाई रही, जो गुरुदेव ने ही तोडी, ''मैं अपने स्पर्श-मात्र से, केवल एक क्षण में, अपनी सारी सिद्धियाँ किसी योग्य व्यक्ति को दे सकता हूँ। समस्त सिद्धियों और शक्तियों के साथ, क्षण-मात्र में मैं इस नश्वर संसार से विदा भी ले सकता हूँ। समय को नापने का अर्थ ही क्या है? ''
वह फिर से खामोश हो गये। उस विशाल सभागार में सन्नाटे का भार अत्यधिक था। उन्होंने आँखें मूँद लीं। कुछ पल वह उसी तरह बैठे रहे। फिर बोले-
'किन्तु....... जिस तरह समय को नापना निरर्थक है, उसी तरह......... क्या ये सारी सिद्धियाँ भी निरर्थक नहीं? इसका मर्म तुम कभी नहीं समझ सकोगे। अभी तो तुम कर्ण-पिशाचिनी विद्या प्राप्त करना चाहते हो न?'
मैंने 'हाँ' कहीं।
'तथास्तु!' उन्होंने हाथ उठा दिया, 'यह सिद्धि तुम्हारे मन की अशान्ति को और भडका दे, यही मैं चाहता हूँ।'
मैं उनकी इस विचित्र इच्छा का मर्म न समझ पाया।
''कल सुबह... शपथ विधि के बाद... तुम्हें मन्त्र-दीक्षा दी जायेगी।' और वह अम्बिका दीदी की तरफ घूमते हुए बोले, तैयारी हो जायेगी न?''
दीदी ने केवल सिर हिलाकर हामी भरी।
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