आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
आठ
आमने-सामने
गुरुदेव श्री चैतन्यानन्द जी हँसने लगे और बोले, 'अभी आप लोग जाइए, आराम कीजिए। परिचय बाद में होता रहेगा।'
जरा रुककर उन्होंने ये वाक्य जोड़े, ''मठ के बाहर न घूमने की सूचना मैंने सबको दे रखी है। यहाँ की वायु में युद्ध गूँज रहा है। अम्बिका! तुम भी यह ध्यान में रखना।''
यहाँ मेरी ओर से एक स्पष्टीकरण आवश्यक है-
इस सत्यकथा में मैंने व्यक्तियों एवं स्थानों के नाम जान-बूझकर बदल दिये हैं। कहीं-कहीं उनके उल्लेख को ही टाल दिया है। मेरी इस सत्यकथा का उद्देश्य है- चमत्कारों. दैवी शक्तियों, आसुरी शक्तियों के रहस्य का उद्घाटन करना। इस कथा द्वारा मैं अन्ध-विश्वासों को विस्तृत करना नहीं, बल्कि काट देना चाहता हूँ। यहाँ जिन व्यक्तियों को पात्र बनाया गया है, उनमें से अधिकांश आज भी जिन्दा हैं। उनके हितों का ध्यान मुझे कदम-कदम पर रखना पड़ा है।
कर्ण-पिशाचिनी का प्रयोग मैंने-हमने-जिस स्थान पर किया था, उसका नाम भी इसी कारणवश अंकित नहीं कर पाया हूँ। इस कृति में 1965 के उस युद्ध का उल्लेख है, जो भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ था। इससे यह अनुमान तो सहज ही लग सकता है कि हमारी प्रयोग-स्थली राजस्थान में थी - जोधपुर के पश्चिम में। युद्ध के दौरान जो बाड़मेर सबकी जुबान पर था, वह उस स्थली के निकट ही था। महीना था सितम्बर का।
इसके सिवा, इस सन्दर्भ में, कुछ भी कहना उचित नहीं जान पड़ता।
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