आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
छ:
मैं चल पड़ा
ठेकेदार सेठ की शानदार विदेशी गाड़ी मेरे केबिन के सामने आकर रुक रही थी। मैं तपाक से बाहर निकला तो पाया, सेठ की नजरें एक खास दिशा में ठहरी हुई हैं। मैंने भी उसी दिशा में देखा। उधर, लक्ष्मी अपने कमजोर शरीर को घसीटती हुई मजदूरी कर रही थी। मैंने सेठ की आँखों की भाषा पढ़ ली। लक्ष्मी का कमजोर, काला शरीर उसे सख्त नागवार गुजर रहा था। इन सेठों का बस चले, तो पत्थर फोड़ने की मजदूरी के लिए भी केवल भारत-सुन्दरियों को नियुक्त किया करें। नहीं, इस वक्त लक्ष्मी के लिए एडवान्स रकम नहीं माँगी जा सकती। कोई और मौका ढूँढना होगा।
केबिन में आकर सेठ ने मुझसे जरूरी बातें कीं। उसे शिकायत थी कि जो मजदूर उसकी साइट पर काम कर रहे हैं, सभी की गति बहुत धीमी है। ''आपको चाहिए कि मजदूरों से जल्दी हाथ चलवायें !' सेठ बोला। मैंने जवाब दिया, ''जी।''
उसका मूड बिगड़ता ही जा रहा था। उसी समय लक्ष्मी, एक बार फिर, सामने से गुजरती दिखाई दी। सेठ ने उसकी ओर उँगली से इशारा करते हुए पूछा, ''इसको यहाँ काम पर किसने रखा है? ''
''आप शायद पहचान नहीं रहे।'' मैंने कहा, ''वह तो काफी दिनों से अपने यहाँ है। यह वही है, जिसका पति एक्सीडेण्ट में मर गया था। उसका नाम..........। ''
''नाम की ऐसी की तैसी! वह यहाँ क्या कर रही है?' सेठ ने पूछा। मुझे तैश तो बहुत आया, किन्तु मैंने शान्ति से कहा, ''जी, वह यहाँ मजदूरी करती है।''
''अरे, उसकी हड्डियों में इतना दम है भी कि मजदूरी कर सके? कमजोर मजदूरों को नौकरी पर रखने के ही कारण काम इतना धीमा हो रहा है। तुम लोग मेरी लुटिया डुबोकर रहोगे। सुनो सुरेश! वह कमजोर औरत कल से काम पर न आये। हमें ऐसे लोगों की कतई जरूरत नहीं, जो ठीक से चल भी न सकते हों।''
''लेकिन.......... सेठ जी..........। ''
''न सिर्फ वह औरत, बल्कि उसके जैसे कमजोर जितने भी मजदूर हों, सबको यहाँ से निकाल दो. समझे? कल से ऐसा एक भी मरियल आदमी मेरी नौकरी पर नहीं होना चाहिए।'' और सेठ तमतमाता हुआ केबिन से निकल गया। कार में बैठा। गायब।
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