आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
''कहो लक्ष्मी?' मैंने उसकी ओर देखा। कन्स्ट्रक्शन साइट पर, उस भयंकर दुर्घटना में पति की मौत हो जाने के बाद लक्ष्मी का नूर दिनोंदिन कम होता गया था। जो कसावट उसके शरीर में पहले थी, उसका अब नाम भी शेष नहीं था। पति की मौत के दो ही दिनों बाद काम पर हाजिर हो जाने वाली उस कठोर युवती की आँखों में मैंने आँसू देखे। मैं सावधान हो गया।
''क्या बात है, लक्ष्मी?'' मैंने पूछा।
''मेरा बच्चा बहुत बीमार है।' उसने कहा, 'बड़े अस्पताल ले गई थी, क्योंकि मुफ्त की दवा वहीं मिलती है, लेकिन.... वहाँ तो नकली दवायें दे रहे हैं। पानी मिलाते हैं, जाने क्या-क्या करते हैं। दवा में असर ही नहीं है।''
''तो किसी प्राइवेट डॉक्टर को दिखाओ।' कहने को मैंने कह तो दिया, लेकिन फौरन अहसास मिल गया, कितनी विडम्बनापूर्ण बात मेरे मुँह से निकली थी। लक्ष्मी की नजरें झुक गईं।
प्राइवेट डाँक्टर को देने लायक पैसे उसके पास कहाँ से आते। बच्चे की जान बचाने के लिए उसे कम-सो-कम पच्चीस रुपयों की सख्त जरूरत थी। वह एडवान्स माँगने आई थी, लेकिन एडवान्स के नाम से ही सेठ कितना चिढता है, मैं जानता था। मेरी अपनी स्थिति भी, उन दिनों, ऐसी नहीं थी कि पच्चीस रुपये जैसी रकम भी उधार दे सकता। सेठ एकाध घण्टे बाद साइट पर आने वाला था। मैंने लक्ष्मी को दिलासा दिया कि सेठ को मनाने की मैं ज्यादा-से-ज्यादा कोशिश करूँगा। तब मैं सोच भी नहीं सकता था, सेठ का क्या जवाब मिलने वाला है।
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