आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
साथी ने महायोगिनी के विरुद्ध बहुत-कुछ कहा, बड़ी देर तक कहा किन्तु एक भी शब्द न तो मेरे मन को स्वीकार था, न मस्तिष्क को। उसी शाम अपने-आप, मेरे कदम महायोगिनी अम्बिकादेवी के निवास की ओर उठने लगे। सोचा, उस सिन्धी मित्र को साथ लेता चलूँ लेकिन वह अपनी दुकान पर नहीं था। मैं अकेला ही आगे बढ़ गया।
महायोगिनी जी का दरवाजा आज बन्द नहीं, खुला दिखाई पड़ा। मैंने प्रवेश किया। महायोगिनी जी अपनी गद्दी पर विराजमान थीं। कल की बनिस्बत आज काफी ज्यादा भीड़ थी। अपने ही ध्यान में लीन थीं महायोगिनी जी। कल की तरह आज भी उनकी आँखें खुली होते हुए भी कुछ नहीं देख रही थीं। उनकी दोनों पुतलियाँ चैतन्य होते हुए भी अचेतन लग रही थीं।
सामने बैठी भीड में कल का वह किशोर सहज ही दिखाई दे गया। आज वह अधमरी हालत में नहीं था। शिथिल अवश्य था वह, लेकिन आत्म-विश्वासी और चैतन्य लग रहा था। माँ का सहारा ले वह शान्ति से बैठा था। मैं जाकर उसी के पीछे चुपके से बैठ गया।
धीरे-धीरे वहाँ के वातावरण ने मुझे अपने प्रभाव में कसना शुरू किया। मैंने स्पष्ट अनुभव किया, कल की तरह आज भी महायोगिनी जी ने मेरे मन पर अधिकार जमा लिया है। मेरे प्रत्येक विचार को वह खुली किताब की तरह पढना शुरू कर चुकी थीं।
कुछ देर बाद उनकी आँखों में चेतना लौटी। कल की तरह आज भी उन्होंने सभा में मौजूद हर व्यक्ति का दुःख-दर्द पूछा। आखिर, कल के उसी किशोर की बारी आ गई। इस बार न तो रोशनियाँ गुल की गईं. न ही किशोर को नजदीक बुलाया गया। महायोगिनी जी स्वयं उठकर आगे बढ़ी। दोनों हाथों से उन्होंने किशोर के कन्धे पकड लिए और एक जोरदार झटका दिया। किशोर पीड़ा से चीख उठा। महायोगिनी जी उसे कन्धों से पकड़ कर उठा रही थीं, जैसे उसे खडा करना चाहती हों। जैसे कोई किसी वस्त्र को झटकारे, वैसे उन्होंने उस किशोर के पूरे शरीर को जोर से झटकार दिया।
आश्चर्य! किशोर के शिथिल पैरों में, अचानक अपने ही बूते पर खड़े होने की क्षमता आने लगी... सब महायोगिनी अम्बिकादेबी का जय-जयकार करने लगे। मैं समझने की कोशिश में था, ऐसा आखिर हो कैसे सकता है।
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