आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
चार
सुनन्दा भाभी की करुण कथा
अपने ही पैरों पर खड़े होने की किशोर की क्षमता बढती जा रही थी। उसके लरजते पैर, धीरे-धीरे, फर्श पर स्थिर होने लगे थे। अन्तत: महायोगिनी जी ने उसके पकड़े हुए कन्धे छोड़ दिये और वह सकुशल खडा रह गया। किशोर की दोनों आँखों से आभार के आँसू बह चले। कमरे में बैठे सभी व्यक्ति गद्गद् और अवाक् हो चुके थे। महायोगिनी जी ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा, कहिए, सुरेश जी! आपको यह चमत्कार कैसा लगा?.
अगले ही क्षण उन्होंने यह शब्द कहे. लेकिन आप हमें अपने कन्सट्रक्शन की साइट पर बुलाकर लोहे के खम्भे खड़े करने का चमत्कार दिखाने के लिए न कहियेगा।'
फिर वह स्वयं ही हँस पड़ी। गम्भीरता के बोझ से जो वातावरण भारी होने लगा था, वह हल्का हो गया।
मेरे दिमाग में फिर से उथल-पुथल मच गई थी। महायोगिनी जी ने उस किशोर को उठाकर जब खड़ा किया था, तब सचमुच मैंने यही विचार किया था कि अगर यह इतना ही आसान है, तो क्यों न महायोगिनी जी को कन्स्ट्रक्शन की साइट पर बुलाकर, भारी-भरकम खम्भों को, मन्त्रों के चमत्कार के सहारे फटाफट खडा कर लिया जाये? जिस क्षण मैंने यह सोचा था. उसी क्षण उन्होंने मेरा विचार पकड लिया था।
आखिर कैसे?
इस अनोखी शक्ति का वैज्ञानिक आधार क्या है? किसी के मन में आप जा घुसें, उसके विचारों को जान लें, उसकी असाध्य बीमारियों को दूर कर दें, यह कैसे हो सकता है?
जब सभी श्रद्धालु चले गये, तब कमरे में मैं और महायोगिनी जी अकेले रह गये। उन्होंने पूछा, 'कैसे... आप इतने गम्भीर लग रहे हैं?'
''गम्भीर के सम्मुख गम्भीर ही बनना पड़ता है।' मैंने उनसे उन्हीं की शैली में बात शुरू की।
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