ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
|
4 पाठकों को प्रिय 139 पाठक हैं |
सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
षष्ठम् रूपान्तरण छिन्नमस्ता हैं। छिन्नमस्ता के कटे हुए कण्ठ से रक्त की तीन धाराऐं स्फुटित हो रही हैं, जिनमें से एक धारा उनके कटे हुए सिर के मुख में प्रवेश कर रही है तथा अन्य दो धाराएँ उनके दोनों ओर उपस्थित उनकी अनुगामी देवियों के मुख में। यह देवी की जीवन-शक्ति का विश्व के पालन-पोषण हेतु वितरित होने का प्रतीक है। छिन्नमस्ता रति और कामदेव के ऊपर आरूढ़ है। इसका तात्पर्य, वे उन्हीं घरों में निवास करती है, जहाँ पति-पत्नी परस्पर प्रेम करते हैं, अर्थात् ब्रह्मयोग का पालन करते हैं।
सप्तम रूपान्तरण धूमावती हैं, जो चंचला, विवर्णा, विधवा और मलीन रूपवाली तथा भूख-प्यास से विह्वल और कलहप्रिया हैं। वे जीव की उस स्थिति का निरूपण करती हैं, जब वह अपने मूल और उद्गम को भूलकर नाना प्रकार की व्याधियों और कष्टों से त्रस्त होकर सुख-शान्ति की प्राप्ति हेतु भटकता है। यह स्थिति जीव की अधोबिन्दु अवस्था (अधोगति) का प्रतीक है।
अष्टम् रूपान्तरण बगलामुखी हैं, जो माया, मोह और भ्रम पर जीव की विजय का प्रतीक हैं।
नवम रूपान्तरण मातंगी हैं, जिनके नेत्र मद के कारण अस्थिर हैं और जो मदमस्त गज के समान लड़खड़ा रही हैं। वे जीव की उस अवस्था का प्रतीक हैं, जब वह मन्त्र, आराधना और ध्यान के मद में मस्त होकर ब्रह्मात्मा से एकत्व हेतु व्यग्र हो जाता है।
दशम रूपान्तरण कमला है, जो परम चेतना और परमानन्द का प्रतीक है और स्वयं आनन्द (भोग) और आनन्द-भोगा (भोक्ता) हैं।
स्वामी श्रीधरानंद जी ने श्रीमहाविद्यातन्त्र' नामक अपनी पुस्तक में दसों देवियों के ध्यान, स्तोत्र, कवच एवं मन्त्रों का वर्णन किया है, जिनके बारे में वे लिखते हैं कि इनके अभ्यास हेतु न्यास, सिद्धि, साध्य, सुप्रसिद्धि, होम, अनुष्ठान, नैवेद्य, गन्ध, पुष्प, नित्यकर्म, भूतशुद्धि, बलि, दान, विधि-विधान, जाति-धर्म, समय-कुसमय, देश-विदेश, चल-अचल, शुद्धाशुद्ध का विचार करने की आवश्यकता नहीं है। केवल श्रद्धा और भक्ति की आवश्यकता है। साधकों को पहले किसी एक महाविद्या की साधना करनी चाहिए और फिर धीरे-धीरे अन्य महाविद्याओं की। इनमें से जिसे भी चाहें, उस मन्त्र का जाप श्रद्धानुसार करने से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
|