ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
दस महाविद्याएँ
तंत्र साधना में दस महाविद्याओं का बहुत ही महत्व है। महाविद्याएँ दस देवियों का वह समूह है, जो देवी-रूपान्तरण के आविर्भाव को प्रतिरूपित करता है, इनमें से सात महाविद्याएँ देवी की सृजनात्मक शक्ति के रूपांतरण की क्रमिक अवस्थाओं का निरूपण करती हैं, और शेष तीन विसर्जनात्मक शक्ति का। ये शक्तियाँ ही समय-समय पर सृष्टि के सन्तुलन और संचालन हेतु विभिन्न रूपों में प्रकट होने की प्रकृति (लीला) का निरूपण करती हैं।
मुण्डमाला तन्त्र और चामुण्डा तन्त्र के अनुसार ये दस महाविद्याएँ इस प्रकार हैं -
कालिका च महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।।
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एत दश महाविद्या: सर्वतंतुरेपु गो पिता:।।
अर्थात्, 1. काली, 2. महाविद्या (तारा), 3. षोडशी, 4. भुवनेश्वरी, 5. भैरवी, 6. छिन्नमस्ता, 7, धूमावती, 8. बगला, 9. मातंगी और 10. कमला।
तन्त्रों में इन गोपनीय दस महाविद्याओं में सती के दिव्यविद्या रूप का प्रथम रूपान्तर काली, महाकाल की आदि-शक्ति है, जो राग-द्वेष (सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण-त्रिगुण) रहित हैं अर्थात्, धन-ऋण की परिकल्पना से परे हैं। जिस प्रकार सब रंग काले रंग में विलीन हो जाते हैं, उसी प्रकार सर्व जगत काली में विलीन हो जाता है। काली केवल मृत्यु का ही प्रतीक नहीं हैं, अपितु मृत्यु पर विजय का भी प्रतीक हैं। उनके काम, क्रोध, भावावेश आदि का अतिउग्र प्रदर्शन उनकी अनन्त-शक्ति का द्योतक है।
द्वितीय रूपान्तरण तारा के रूप में हैं, जो एक को अनन्त रूपों में विभाजित करने के लिए सृष्टि की रचना की शक्ति और ऊर्जा से गर्भवती हैं।
तृतीय रूपान्तरण षोडशी, जो त्रिपुरसुन्दरी भी कहलाती है, कामना की सोलह कलाओं (विकृतियों) का मूर्त्तरूप हैं।
चतुर्थ रूपान्तरण भुवनेश्वरी हैं, जो विश्व का पोषण और भौतिक जगत की सारभूत शक्तियों का निरूपण करती हैं।
पंचम रूपान्तरण भैरवी, जो त्रिपुरभैरवी भी कहलाती हैं, जगत के अनन्त आकर्षण, भोग और आनन्द की जननी हैं, और प्रत्येक जीव को उनकी प्राप्ति हेतु प्रेरित करती हैं।
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