लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> आत्मतत्त्व

आत्मतत्त्व

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :109
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9677
आईएसबीएन :9781613013113

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

27 पाठक हैं

आत्मतत्त्व अर्थात् हमारा अपना मूलभूत तत्त्व। स्वामी जी के सरल शब्दों में आत्मतत्त्व की व्याख्या


स्वर्ग तथा अन्य स्थानों से सम्बन्धित धारणाएँ भी हैं, किन्तु उन्हें द्वितीय श्रेणी का माना जाता है। स्वर्ग की धारणा को निम्नस्तरीय माना जाता है। उसका उद्भव भोग की एक स्थिति पाने की इच्छा से होता है। हम मूर्खतावश समग्र विश्व को अपने वर्तमान अनुभव से सीमित कर देना चाहते हैं। बच्चे सोचते हैं कि सारा विश्व बच्चों से ही भरा है। पागल समझते हैं कि सारा विश्व एक पागलखाना है, इसी तरह अन्य लोग। इसी प्रकार जिनके लिए यह जगत् इन्द्रिय-सम्बन्धी भोग मात्र है, खाना और मौज उड़ाना ही जिनका समग्र जीवन है, जिनमें तथा नृशंस पशुओं में बहुत कम अन्तर है, ऐसे लोगों के लिए किसी ऐसे स्थान की कल्पना करना स्वाभाविक है, जहाँ उन्हें और अधिक भोग प्राप्त होंगे, क्योंकि यह जीवन छोटा है। भोग के लिए उसकी इच्छा असीम है। अतएव वे ऐसे स्थानों की कल्पना करने के लिए विवश हैं, जहाँ उन्हें इन्द्रियों का अबाध भोग प्राप्त हो सकेगा; फिर जैसे हम और आगे बढ़ते हैं, हम देखते हैं कि जो ऐसे स्थानों को जाना चाहते हैं, उन्हें जाना ही होगा; वे उसका स्वप्न देखेंगे, और जब इस स्वप्न का अन्त होगा, तो वे एक दूसरे स्वप्न में होंगे जिसमें भोग प्रचुर मात्रा में होगा; और जब वह सपना टूटेगा तो उन्हें किसी और वस्तु की बात सोचनी पड़ेगी। इस प्रकार वे सदा एक स्वप्न से दूसरे स्वप्न की ओर भागते रहेंगे।

इसके उपरान्त अन्तिम सिद्धान्त आता है, जो आत्मा-विषयक एक और धारणा है। यदि आत्मा अपने स्वरूप और सारतत्व में शुद्ध और पूर्ण है, और यदि प्रत्येक आत्मा असीम एवं सर्वव्यापी है, तो अनेक आत्माओं का होना कैसे सम्भव है? असीम बहुतसे नहीं हो सकते। बहुतों की बात ही क्या, दो तक भी नहीं हो सकते। यदि दो असीम हों, तो एक दूसरे को सीमित कर देगा और दोनों ही ससीम हो जायँगे। असीम केवल एक ही हो सकता है और साहसपूर्वक इस निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है कि वह केवल एक है, दो नहीं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai