ई-पुस्तकें >> श्रीकृष्ण चालीसा श्रीकृष्ण चालीसागोपाल शुक्ल
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श्रीकृष्ण चालीसा
विदुर भगत के जब घर आये,
उसकी पत्नी पत्र खिलाए।
विदुर भगत ने आकर रोका,
कदली छाल देने से टोका।।35।।
इस प्रकार तब आप उच्चारे,
प्रेमी भक्त मुझे हैं प्यारे।
लगी मुझे है छाल प्यारी,
और गिरी की चाल न्यारी।।36।।
जय जय प्रेमभाव के प्यारे,
जय जय आदि अन्त से न्यारे।
जय जय विश्वबन्धु जगपालक,
जय जगपिता यशोदा बालक।।37।।
जय जय सूरदास के प्यारे,
जय आनन्द घनश्याम मुरारे।
जय जय मोर मुकुट के धारी,
जय पीताम्बर सहित मुरारी।।38।।
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