ई-पुस्तकें >> श्रीकृष्ण चालीसा श्रीकृष्ण चालीसागोपाल शुक्ल
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श्रीकृष्ण चालीसा
दुर्योधन के मन में आया,
पाँडवों के संग कपट कमाया।
लाक्षा गृह इक त्यार कराकर,
उसके बीच में उन्हें फंसाकर।।31।।
बाहर से उसे आग लगाई,
भस्म होये जिमि पांडव भाई।
प्रभो। आपने की चतुराई,
लाक्षा ग्रह से सुरंग बनाई।।32।।
जय पाँडू सुत तारन हारे,
जय दुष्टों को मारन हारे।
जय जय जगन्नाथ सुखरासी,
जय अखंड अतुलित अविनाशी।।33।।
जय जय वेद पुराण बुलावें,
जय जय ऋषी मुनी जन गावें।
जय जय हुंडी तारण वाले,
जय नरसी दुःख टारन वाले।।34।।
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