ई-पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनी श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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गीता काव्य रूप में।
हे गुडाकेश, ईश्वर जीवों के हृदय-देश में रहता है।
माया से देहयंत्र द्वारा सबको भरमाया करता है।।६१।।
हे अर्जुन सारे भाव लिए, तुम उसकी शरण गहोगे जब।
पा कृपा मिलेगी परम शांति, वह परमधाम पाओगे तब।।६२।।
यह बतलाया अति गुप्त ज्ञान, अब अच्छी तरह विचार करो।
फिर जैसा समझो उचित पार्थ, वैसा ही अब तुम काम करो।।६३।।
हे सव्यसाचि, अब उसे सुनो जो अतिशय होता गोपनीय।
ये हितकर वाणी बता रहा क्योंकि तुम मे रे अतिशय प्रिय।।६४।।
मुझमें मन लगा, भक्त बन जा, मम यजन और कर मुझे नमन।
तब तुम मुझको पा जाओगे, हो मेरे प्रिय, यह सत्य वचन।।६५।।
तू केवल शरण हमारी गह, सब धर्मों का आश्रय तज कर।
पापों से मुक्त करूँगा मैं, सब शोक, पाप, भय लूँगा हर।।६६।।
जो तपी नहीं या भक्त न हों, जिनमें सुनने की चाह न हो।
जिनकी मुझमें हो दोष-दृष्टि, यह गुप्त ज्ञान मत उसे कहो।।६७।।
यह गुप्त ज्ञान है गीता का, जो भक्तों को समझायेगा।
या मेरी भक्ति करेगा नित, वह निश्चय मुझको पायेगा।।६८।।
मेरा प्रिय कार्य करेगा जो, उससे बढ़ ना कोई नर है।
भूमण्डल पर उसके समान, मेरा ना कोई प्रियतर है।।६९।।
संवाद धर्मयुत दोनों का, जो जन इसका वाचन करते।
यह ही है उनका ज्ञान-यज्ञ, इससे मेरा पूजन करते।।७०।।
यदि दोष-भाव को रखे बिना, श्रद्धा से नर इसको सुन ले।
होकर पापों से मुक्त सभी शुभ लोकों को वह प्राप्त करे।।७१।।
हे पार्थ, बताओ क्या तुमने, एकाग्र भाव से सुना इसे।
अज्ञान जनित संशय तेरा क्या मिटा धनंजय सुनने से।।७२।।
अर्जुन बोले, सन्देह, मोह मिट गये कृपा पा परमेश्वर।
हे अच्युत अब मैं स्थित हूँ, आज्ञा पालन हित हूँ तत्पर।।७३।।
संजय बोले, हे महाराज, रोमांचित हो आया था तब।
श्रीकृष्ण और अर्जुन का यह अद्भुत संवाद सुना था जब।।७४।।
यह गुह्य ज्ञान योगेश्वर ने जो स्वयं सुनाया अर्जुन को।
हे राजन, व्यास कृपा द्वारा पड़ गया सुनायी वह मुझको।।७५।।
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