लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनी

श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनी

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :93
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9645
आईएसबीएन :9781613015896

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

411 पाठक हैं

गीता काव्य रूप में।


शस्त्रों में मैं हूँ वज्र और हूँ कामधेनु सब गायों में।
सन्तानेच्छुक में कामदेव, वासुकि हूँ मैं सब साँपों में।।२८।।
जलचरपतियों में वरुण और मैं शेषनाग हूँ नागों में।
पितरों में मैं अर्यमा पार्थ, यम शासन करने वालों में।।२९।।
दैत्यों में मैं प्रहलाद और मैं महाकाल हूँ गणकों में।
पशुओं में हूँ मैं सिंह पार्थ, हूँ वैनतेय पक्षीगण में।।३०।।
पावनकर्त्ता में पवन, शस्त्रधारी जन में श्रीराम जान।
जलचर में मकर समझ अर्जुन, स्रोतों में सुरसरि मुझे मान।।३१।।
उत्पन्न, नाश, पालन जग का करने वाला मैं ही अर्जुन।
विद्याओं में अध्यात्म ज्ञान, वादों में तत्व समझ कर गुन।।३२।।
मैं महाकाल, धारक जग का, मैं ही कहलाता विश्व रूप।
मैं द्वन्द्व समास समासों में, अक्षर में 'अ' हे भरत भूप।।३३।।
होने वालों का कारण हूँ, मैं मृत्यु सभी हर्त्ताओं में।
स्मृति,धृति, मेधा, क्षमा, गिरा, श्री, कीर्ति सभी बालाओं में।।३४।।
छन्दों में मैं ही गायत्री, गायन श्रुतियों में बृहतसाम।
ऋतुओं में मधुऋतु कहलाता, मासों में अगहन मास मान।।३५।।
मैं तेज तेजवानों में हूँ, मैं द्यूत रूप सब छलियों में।
सात्विक पुरुषों में सत्व समझ, तू बिजय जान सब बलियों में।।३६।।
मैं वृष्णि वंश में वासुदेव, हूँ वेद व्यास सब मुनियों में।
मैं पाण्डुसुतों में अर्जुन हूँ, आचार्य शुक्र सब कवियों में।।३७।।
हूँ दुष्ट दमन में दण्ड, विजय-इच्छुक जन में तुम नीति मान।
मैं मौन गोपनीयों में हूँ, ज्ञानी जन में मैं बना ज्ञान।।३८।।
सब जीवों में हूँ बीज रूप, हे भारत मुझे समझ ऐसे।
मैं सब में व्याप्त बिना मेरे, कोई चर-अचर कहाँ-कैसे।।३९।।
हैं मेरी दिव्य विभूति बहुत, ना उनका कोई पार अहा।
हे गुडाकेश, मैंने तुमसे, केवल उनका संक्षेप कहा।।४०।।
जो-जो पदार्थ, ऐश्वर्य, कान्ति या बल से हैं सम्पन्न हुए।
वे सभी हमारे तेज अंश, मेरे द्वारा उत्पन्न हुए।।४१।।
क्या लाभ बहुत बातों से है, संक्षेप समझ मैं जग-कारण।
मैं एक अंश से ही अपने सारे जग को करता धारण।।४२।।

इति दसवें अध्याय में, प्रभु विभूति का योग।
विश्व रूप समझे सुजन, प्रभु से हो संयोग।।

 

¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book