ई-पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनी श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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गीता काव्य रूप में।
।। ॐ श्रीपरमात्मने नमः।।
अथ पहला अध्याय : अर्जुन विषादयोग
महाराज धृतराष्ट्र का संजय से संवाद।
मोह और संशय सहित अर्जुन कहें विषाद।।
माधव मैं कैसे करूँ, कुल का अपने नाश।
कुलहंता बन लाभ क्या, पाकर भोग विलास।।
धृतराष्ट्र ने कहा-हे संजय, है धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र जहां।
मेरे सुत और पाण्डवों ने, जा युद्ध हेतु क्या किया वहां।।१।।
संजय बोले-हे महाराज, पाण्डव-सेना का लख व्यूहन।
आचार्य द्रोण के पास पहुँच, उनसे बोले नृप दुर्योधन।।२।।
आचार्य, पाण्डु पुत्रों की यह सेना विशाल देखो इसको।
है किया यहाँ पर व्यूह बद्ध, तब शिष्य द्रुपद-सुत ने जिसको।।३।।
हैं महाधनुर्धर शूर सभी योधा ये पार्थ वृकोदर-से।।
उनमें अनेक हैं महारथी युयुधान, विराट, दुपद जैसे।।४।।
हैं परम तेजमय धृष्टकेतु, काशी नरेश, नृप चेकितान।
भ्राताद्वय पुरुजित कुन्तिभोज, फिर शैव्य सरिस योधा महान।।५।।
विक्रान्त, उत्तमौजा उनमें, हैं युधामन्यु से वीर्यवान।
द्रौपदी, सुभद्रा तनय सभी ये महारथी अति तेजवान।।६।।
मेरी सेना के जो विशिष्ट, आचार्य आप उनको सुन लें।
सेना के प्रमुख नायकों की पहचान आप गुरुवर कर लें।।७।।
संग्रामजयी गुरु कृपाचार्य, हैं स्वयं आप, फिर भीष्म कर्ण।
चिरजीवी अश्वत्थामा है सुत-सोमदत्त, भ्राता विकर्ण।।८।।
मेरे हित प्राणाहुति देने आए अनेक हैं महावीर।
ये अस्त्र-शस्त्र में निपुण, युद्ध कौशल में पटु हैं सभी धीर।।९।।
रक्षित है भीष्म पितामह से, मेरी सेना पर है ससीम।
पर्याप्त विजय-हित पाण्डव दल, जिसके संरक्षक स्वयं भीम।।१०।।
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