ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
यादें बचपन की
कागज की कश्तियां
पानी पर तैराना,
याद आता है हमें
गुजरा हुआ जमाना।
चंचल बुद्धि, चंचल मन
खेलने निकलते थे
रेतीले टीलों पर हम
उस बालू रेत पर
उसी रेत के घरौंदे बनाना।
याद आता है हमें
गुजरा हुआ जमाना।
कभी वर्षा के सीजन में
नंगे शरीर होकर
धड़ल्ले ये गलियों में
उछल कूद कर नहाना।
याद आता है हमें
गुजरा हुआ जमाना।
सर्दी की कडक़ड़ाती
बर्फि ली ठंड में
लसेटे रजाई अपने तन पे
चारपाई पर लेटकर
रेवड़ी मूंगफली चबाना।
याद आता है हमें
गुजरा हुआ जमाना।
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