ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
वर्षा की हरियाली
चारों तरफ छाई हरियाली
आई वर्षा की रुत मतवाली।
मेघा बरसे झूमके झर-झर
खड़े फैलाये तरू अपने कर
जब गिरता है छम-छम पानी
चारों तरफ छाई हरियाली
चारों तरफ छाई हरियाली
आई वर्षा की रुत मतवाली।
रुत का होता है अद्भुत नजारा
मनमोहक दृश्य लगता है प्यारा
धरा-मेघ मिलते देते हैं दिखाई।
चारों तरफ छाई हरियाली
चारों तरफ छाई हरियाली
आई वर्षा की रुत मतवाली।
आया वृक्षों पर नया यौवन
त्याग पुराने धारते नये वस्त्र
लगती है प्यारी धरा रंगीली
चारों तरफ छाई हरियाली
चारों तरफ छाई हरियाली
आई वर्षा की रुत मतवाली।
नहाते धड़ल्ले से गलियों में
मासूम नंगे प्यारे-प्यारे बच्चे
होती प्रकृति की छटा निराली।
चारों तरफ छाई हरियाली
चारों तरफ छाई हरियाली
आई वर्षा की रुत मतवाली।
। समाप्त ।
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