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यादें (काव्य-संग्रह)
यादें (काव्य-संग्रह)
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9607
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आईएसबीएन :9781613015933 |
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7 पाठकों को प्रिय
31 पाठक हैं
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
बचपना
जब याद आता है बचपना
मन भरने लगता है उडारी
चेहरा हो जाता खिला-खिला।
आँखों में वो शरारती भाव
देह सुडौल हाव-भाव नटखट
करके ऊंची गर्दन चलना
हर काम करते थे झटपट
शरीर होता था तना-तना।
जब याद आता है बचपना
मन भरने लगता है उडारी
चेहरा हो जाता है खिला-खिला।
जब होता सर्दी का मौसम
जलाते उपले बीच आँगन
हाथ सेंकते बैठ चारों ओर
मन खुशी से होता प्रसन्न
शकरकंद भूनते आग जला।
जब याद आता है बचपना
मन भरने लगता है उडारी
चेहरा हो जाता है खिला-खिला।
गर्मी की तपती दोपहरी में,
जाते गाँव के बाहर उपवन में
आँख मिचने का ढोंग रचाकर
पैर दबा चुपके से निकलते
अपने घर वालों को सुला।
जब याद आता है बचपना
मन भरने लगता है उडारी
चेहरा हो जाता है खिला-खिला।
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पुस्तक का नाम
यादें (काव्य-संग्रह)
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